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10.2 जीवन में अर्थ का महत्त्व एवं स्थान
अर्थ-प्रबन्धन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जीवन के विविध पक्षों – धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष में अर्थ का क्या स्थान है, इसका तुलनात्मक विश्लेषण करना अत्यावश्यक है। इससे ही जीवन में अर्थ के महत्त्व एवं स्थान का सापेक्षिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
सामान्यतया मोहग्रस्त जीवन में विभिन्न संज्ञाओं (वासनाओं एवं इच्छाओं) से व्यक्ति आकुल-व्याकुल एवं सन्तप्त रहता है। उसके पास एकमात्र समाधान होता है - 'अर्थ'। 'अर्थ' के द्वारा ही वह वासनाओं की पूर्ति कर पाता है। अतः, ऐसी जीवनशैली में अर्थ की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। 10.2.1 सामान्य व्यावहारिक जीवन में अर्थ की उपयोगिता
एक आम आदमी के जीवन में 'अर्थ' निम्न कार्यों अथवा व्यवहारों की पूर्ति के लिए आवश्यक है - * जीवन-अस्तित्व की बुनियादी आवश्यकताओं (Basic Necessities of Life) अर्थात् रोटी,
कपड़ा और मकान की पूर्ति का साधन। ★ जीवन की सुरक्षा का साधन (Means of Safety Measures) ★ शिक्षा-प्राप्ति का साधन (Means of Education) ★ चिकित्सकीय सुविधाओं का साधन (Means of Medical Facilities) * आवागमन का साधन (Means of Travellings & Transportation) ★ सम्प्रेषण का साधन (Means of Communications) * व्यापार एवं उद्योगों के संचालन का साधन (Means for operation of Trades &
Industries) ★ जीवन-उपयोगी विविध उपकरणों एवं मशीनों के निर्माण एवं प्राप्ति का साधन (Means of
Manufacturing & Procuring Various Equipments & Machines) * मनोरंजन का साधन (Means of Entertainment) * जीवन-सुविधाओं की प्राप्ति का साधन (Means of Comforts) ★ विलासिताओं का साधन (Means of Luxeries) ★ भविष्य सम्बन्धी वांछित एवं अवांछित आवश्यकताओं, जैसे - उच्च शिक्षा, विवाह, बीमारी,
वृद्धावस्था आदि की पूर्ति का साधन (Means of Future Needs) ★ भूकम्प, महामारी, उपद्रवादि से उत्पन्न आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन (Means
of Casual Needs)
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अध्याय 10 : अर्थ-प्रबन्धन
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