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बृहत्कल्पभाष्य में कहा गया है कि आजीविकोपार्जन के लिए गृहस्थ अर्थशास्त्र का भी
अध्ययन करते थे। • नन्दीसूत्र के अनुसार, वैनयिकी बुद्धि से मनुष्य अर्थशास्त्र आदि लौकिक शास्त्रों में
निष्णात हो जाते थे।" • ज्ञाताधर्मकथासूत्र के अनुसार, सम्राट् श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार अर्थशास्त्र का विद्वान्
था।
• वसुदेवहिण्डी में कहा गया है कि अगडदत्त कौशाम्बी निवासी आचार्य दृढप्रहारी के पास
अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए ही गया था। • जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भरत के सेनापति सुषेण को अर्थशास्त्र एवं नीतिशास्त्र दोनों में निपुण
कहा गया है। • अधिक क्या कहना, आदि तीर्थंकर ऋषभदेवजी को जैन-परम्परा में अर्थ-व्यवस्था का
आदिसंस्थापक माना गया है। • आदिपुराण के अनुसार, उन्होंने अपने पुत्र भरत के लिए अर्थशास्त्र का निर्माण किया
था।82
इस प्रकार, गृहस्थोचित कर्त्तव्यों के सम्यक् निर्वाह के लिए जैन-परम्परा में अर्थ का महत्त्व माना जाता रहा है। ★ उपासकदशांगसूत्र में कहा गया है कि भगवान् महावीर के काल में दस श्रेष्ठियों ने अपने अपार
धन-वैभव को मर्यादित करते हुए व्रतमय जीवन व्यतीत किया था। इनके नाम इस प्रकार
हैं83 - 1) आनन्द
4) सुरादेव 7) शकडालपुत्र 10) सालिहीपिता 2) कामदेव 5) चुल्लशतक 8) महाशतक 3) चुलनीपिता 6) कुण्डकौलिक 9) नन्दिनीपिता
इसके अतिरिक्त, प्राचीनकाल से ही बड़े-बड़े चक्रवर्ती, सम्राट्, राजा-महाराजा, मंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष एवं नगरसेठ आदि जैनधर्म के अनुयायी रहे हैं। इन्होंने अपनी-अपनी भूमिकानुसार धर्मानुकूल एवं मोक्षानुकूल अर्थोपार्जन किया था। * जैन-पौराणिक कथाओं में भी अनेक बार प्राचीन सामाजिक संस्कृति के आधार पर अर्थ के
महत्त्व को सूचित किया गया है, जैसे - समराइच्चकहा, कुवलयमालाकहा, पउमचरियं, कल्पसूत्र आदि 85
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अध्याय 10 : अर्थ-प्रबन्धन
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