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★ अर्थ केवल आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम है, किन्तु अभ्युदय (धर्म) और निःश्रेयस् (मोक्ष) की प्राप्ति का नहीं ।
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★ अंतरंग में उत्पन्न इच्छाओं की सन्तुष्टि का माध्यम कोई निश्चित अर्थ (वस्तु) नहीं, बल्कि अनेक अर्थ हो सकते हैं।
★ किसी भी साधन में यह सुनिश्चितता नहीं है कि वह इच्छाओं की सन्तुष्टि कर ही देगा ।
★ यह आवश्यक नहीं कि जो साधन एक बार सन्तुष्ट करता है, वह दोबारा भी सन्तुष्ट करेगा ही । ★ यह जरुरी नहीं कि जो साधन एक के लिए उपयुक्त हो, वह दूसरे के लिए भी उपयुक्त होगा ही
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★ यदि कोई आर्थिक साधन सफल हो भी जाता है, तो उससे प्राप्त सन्तुष्टि स्थायी नहीं होती । कुछ ही समय में दूसरी कामना जन्म ले लेती है, जिसकी सन्तुष्टि के लिए पुनः दूसरे साधनों की आवश्यकता पड़ती है।
★ सफल आर्थिक साधन की उपयोगिता भी प्रत्येक उपयोग के साथ घटती जाती है, जिसे आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने सीमान्त - उपयोगिता - ह्रास - नियम (Law of Diminishing Utility) के द्वारा बतलाया है ।
उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर आध्यात्मिक विचारधाराओं ने ऐसे पुरूषार्थ की खोज की, जो सभी दोषों से रहित हो और दुःख का आत्यन्तिक वियोग कर सके। इसे ही मोक्ष या अपवर्ग कहा गया। 1
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जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
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