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उदाहरणार्थ, परिजनों के लिए गृहिणी द्वारा भोजन बनाना अनार्थिक कार्य होते हुए भी 'अर्थ'
है।
★ साधारण अथवा असाधारण दोनों व्यवहार 'अर्थ' हैं और इसीलिए वैज्ञानिक अनुसन्धान आदि
असाधारण (Uncommon/Special) व्यवहार भी 'अर्थ' ही हैं। * सामाजिक एवं असामाजिक दोनों प्रकार का व्यवहार 'अर्थ' है। उदाहरणार्थ, एकान्तवासी
द्वीपवासी एवं वनवासी मनुष्यों का व्यवहार एकाकी (असामाजिक) होते हुए भी 'अर्थ' है।
वर्तमान में प्रो. रॉबिन्स की उक्त परिभाषा ही आर्थिक जगत् में सर्वाधिक मान्य है। इसके अनुसार, समस्त सांसारिक वस्तुएँ तथा व्यवहार 'अर्थ' हैं, जिनकी बाजार में आवश्यकता है। अतः सम्पूर्ण जड़ एवं चेतन जगत् का 'अर्थ' में समावेश है। यहाँ तक कि रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द आदि अचैतसिक शक्तियाँ तथा ज्ञान, अनुभव, भावना, मनोबल आदि चैतसिक शक्तियाँ भी 'अर्थ' ही हैं। भौतिक-सन्तुष्टि के लक्ष्य से किया जा रहा प्रत्येक व्यवहार 'अर्थ' है। 'अर्थ' सम्बन्धी उपर्युक्त दृष्टिकोण बहुत हद तक भारतीय-दार्शनिक विचारधाराओं से सम्मत है।
जहाँ एक ओर प्रो. रॉबिन्स ने 'अर्थ' के व्यापक स्वरूप को प्रस्तुत किया, वहीं इसकी मर्यादा भी निश्चित की। उन्होंने केवल उसी वस्तु (व्यवहार) को 'अर्थ' माना, जिसकी बाजार में माँग है यानि जो सीमित या दुर्लभ (Scarce) है। उदाहरणार्थ, सड़े हुए टमाटर बड़ी मात्रा में होने पर भी 'अर्थ' नहीं हो सकते, क्योंकि उनकी बाजार में कोई माँग ही नहीं होती। यह अर्थ-विषयक मर्यादा भी इस अध्याय में स्वीकार्य है, क्योंकि यहाँ पर व्यक्तिविशेष के लिए उसी वस्तु या व्यवहार को 'अर्थ' मानना औचित्यपूर्ण होगा, जिससे उस व्यक्ति का जीवन-यापन हेतु सरोकार है।
भारतीय दार्शनिक परम्परा में 'अर्थ' को पुरूषार्थ कहा गया है, जिसमें उपर्युक्त आशयों का समावेश हो जाता है, क्योंकि ये व्याख्याएँ भी 'अर्थ' को एक पुरूषार्थ (व्यवहार) के रूप में ही देखती
हैं।
(5) भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. जे. के. मेहता (20वीं शताब्दी) के अनुसार, वह प्रत्येक व्यवहार 'अर्थ' है, जिसके लिए मानव इच्छा करता है। उनका यह भी कहना है कि इच्छाविहीनता (Wantlessness) ही मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए, क्योंकि इसी दशा में परम शान्ति एवं सन्तुष्टि की उपलब्धि सम्भव है।'
इस प्रकार, भारतीय एवं जैनदर्शन से साम्य रखते हुए प्रो. जे. के. मेहता ने आवश्यकताओं के न्यूनीकरण (Minimization of needs) पर बल देते हुए मनुष्य की अधिकतम सन्तुष्टि के उपाय को 'अर्थ' कहा है।
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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