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6.5 असंयमित भाषिक - अभिव्यक्ति के दुष्परिणाम
अभिव्यक्ति और विशेष रूप से वाचिक - अभिव्यक्ति (वाणी) की सबसे अहम विशेषता है कि वह धनुष से छूटे हुए बाण के समान होती है, जो मुख रूपी कमान में लौटाई नहीं जा सकती । वक्ता चाहे सायास कहे अथवा अनायास, मुख से जो शब्द निकल जाते हैं, वे तो अपना प्रभाव दिखाते ही हैं। अतः किसी ने कहा भी है 40
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बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय । काम बिगारे आपनो, जग में होत हसाय । ।
अभिव्यक्ति के मिथ्या प्रयोगों से उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं
(1) शारीरिक शक्ति का ह्रास
अधिक बोलना, बारम्बार बोलना, जोर-जोर से बोलना, चिल्ला-चिल्लाकर बोलना, बड़-बड़ करना इत्यादि ऐसी क्रियाएँ हैं, जिनसे शारीरिक ऊर्जा का अत्यधिक ह्रास होता है ।
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(2) मानसिक क्षोभ
विचार और वाणी, भाव और भाषा एवं संकल्प और शब्द का परस्पर गहन सम्बन्ध है। यदि व्यक्ति की वाणी में कर्कशता, कठोरता, तीखापन आदि तत्त्व होते हैं, तो वे अभिव्यक्ति के पूर्व में भी और पश्चात् भी उसकी मानसिक प्रसन्नता को भंग करते हैं । उसकी सरलता, सहजता, समता, शान्ति और आनन्द के भावों को आघात लगता है। निश्चित ही वह अल्प या अधिक मात्रा में निराशा, कुण्ठा, तनाव, अवसाद (डिप्रेशन), उद्वेग और असहजता का शिकार हो जाता है, इसीलिए सन्त कबीर को भी कहना पड़ा.
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(3) प्राणशक्ति का अधिक व्यय
कलहकारी अथवा विवादजनक वाणी बोलता हुआ व्यक्ति अल्प या अधिक रूप से मानसिक असन्तुलन का शिकार हुए बिना नहीं रह पाता। इससे उसके श्वास की गति असामान्य और अनियमित हो जाती है, जिसका दुष्प्रभाव उसे स्वयं ही भुगतना पड़ता है।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ।।
(4) शारीरिक रोगों को आमन्त्रण
कलह, विवाद आदि से घिरा व्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप से अनेक शारीरिक रोगों को आमन्त्रित करता रहता है। अक्सर शारीरिक ऊर्जा का अपव्यय अधिक होने से उसे शारीरिक थकान (Physical Fatigue) महसूस होती रहती है। उसकी प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) कम हो जाती है । रक्तचाप एवं हृदय गति असामान्य हो जाती | असंयमित वाणी व्यवहार के परिणामस्वरूप विविध अन्तःस्रावी
अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
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