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(1) प्रिय वचन
मधुर वचन एक प्रकार का वशीकरण मंत्र है। जो मधुर बोलता है, वह सहज ही सबका प्रिय बन जाता है। किसी कवि ने कहा भी है 52
अर्थात् सभी मनुष्य प्रिय वचन से सन्तुष्ट रहते हैं, तो फिर मधुर वचन बोलने में दरिद्रता क्यों की जाए ? प्रसिद्ध उक्ति है
प्रिय-वाक्य-प्रदानेन, सर्वे तुष्यन्ति मानवाः । तस्मात् तदेव वक्तव्यं, वचने का दरिद्रता ?
अर्थात् न कौआ किसी का धन हरता है और न कोयल किसी को धन देती है, फिर भी कोयल मधुर बोलकर सबको अपनी ओर आकर्षित करती है और सबकी प्यारी बन जाती है, किन्तु रंग-रूप में समान होने पर भी कौआ काँव-काँव करके तिरस्कृत होता है । इस प्रकार यदि हम आकृति से सुन्दर न भी हैं, तो भी हम अपनी वाणी की मिठास से सुन्दर बन सकते हैं ।
'बोलो' शब्द का किसी ने अर्थ किया है बो + लो यानि 'बो' कर 'लो' (Sow and Reap ) । यदि हम श्रेष्ठ और मीठे फल प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें सदा मीठे वचनों के ही बीज बोने चाहिए । कटु वचनों का प्रयोग करने पर कटु फल ही मिलेंगे, मीठे फल नहीं ।
काग काको धन हरे, कोयल काको देय । मीठी वाणी बोलके, जग अपनो कर लेय ।
लौकिक कहावत भी है कि 'गुड़ न दो तो चलेगा, लेकिन गुड़ जैसा मीठा अवश्य बोलो' । किन्तु कई बार हमारे शब्द तलवार की धार से भी अधिक तीक्ष्ण होते हैं। दशवैकालिकसूत्र में साधक को सावचेत करते हुए कहा गया है। 'वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबन्धीणी महब्भयाणि ' अर्थात् वाणी के द्वारा कहे गए दुष्ट और कठोर वचन दीर्घकाल के लिए वैर और भय के कारण बन जाते हैं। 54 अतः वाणी का प्रयोग सम्यक्तया विचारकर ही करना चाहिए । आचारांगसूत्र में भी इसी की पुष्टि करते हुए कहा गया है 'नो वयणं फरुसं वइज्जा' अर्थात् कटुवचनों का प्रयोग कदापि न करो। " सूत्रकृतांग में इसके भयावह परिणामों के बारे में कहा गया 'जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिभमइ महं' अर्थात् जो बात-बात में दूसरों को कटु सुनाते हैं, तिरस्कृत करते हैं एवं शोषित करते हैं, वे कर्मबन्धन के फलस्वरूप दीर्घकाल तक इस संसार अटवी में भटकते ही रहते हैं।" अतः हमें कटुक, कठोर एवं कर्कश वाणी का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
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दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग हैं। कोई मीठा बोलते हैं, तो कोई कड़वा । कोई कड़वा सच कहकर स्पष्टवादी होने का दम्भ भरते हैं, किन्तु यह उनका झूठा अहंकार ही होता है, 7 जबकि वास्तविकता में
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जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
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