________________
इस प्रकार, भारतीय दार्शनिकों ने मन की विविध क्षमताओं का प्रतिपादन किया है। इसका सार यही है कि मन ज्ञानेन्द्रिय भी है, कर्मेन्द्रिय भी है, उभयेन्द्रिय भी है और अन्तरिन्द्रिय भी है। विशेषता यह है कि प्रत्येक इन्द्रिय केवल अपने विषयों को ही ग्रहण करती है तथा बाह्य विषयों तक ही सीमित रहती है, जबकि मन इन सब इन्द्रियों के विषयों को ग्रहण करते हुए अंतरंग विषयों की अनुभूति भी करता है। अतः मन की इन अनुपम क्षमताओं के कारण ही भारतीय दर्शनों में मन को अतीन्द्रिय भी कहा गया है। (3) मन के विविध पहलू
। भारतीय मन का तात्विक मन का मन की उत्पत्ति मन का परिमाण"
दर्शन स्वरूप अस्तित्व की प्रक्रिया विषय के आधार परी 1) न्याय आत्मादि बारह प्रमेयों नित्य अनुत्पन्न
एक समय में एक ही विषय का (जानने में आने वाले
ज्ञान करने में समर्थ (अणु) पदार्थों) में से एक 2) वैशेषिक पृथ्वी आदि नौ द्रव्यों नित्य अनुत्पन्न एक समय में एक ही विषय का
ज्ञान करने में समर्थ (अणु) 3) सांख्य मूल प्रकृति से उत्पन्न अनित्य पुरूष एवं प्रकृति एक समय में सभी विषयों का 4) एवं योग अहंकार नामक तत्त्व
का संयोग ज्ञान करने में समर्थ (विभु) का एक विकार
बुद्धि की उत्पत्ति
3
अहंकार की उत्पत्ति
मन एवं अन्य पदार्थों की उत्पत्ति अनुत्पन्न
5) मीमांसा पृथ्वी आदि ग्यारह नित्य :
द्रव्यों में से एक 6) वेदान्त ब्रह्म से उत्पन्न माया अनित्य
यानि भ्रम का एक विकार
ब्रह्म
एक समय में सभी विषयों का ज्ञान करने में समर्थ (वि) एक समय में सभी नहीं, किन्तु अनेक विषयों का ज्ञान करने में समर्थ (मध्यम)
ईश्वर की उत्पत्ति
माया (इन्द्रजाल)
की उत्पत्ति
मन एवं अन्य सूक्ष्म विकारों की उत्पत्ति
365
अध्याय 7: तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org