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8.1 पर्यावरण क्या है?
पर्यावरण शब्द ‘परि' और 'आवरण' के योग से बना है। ‘परि' का अर्थ है - चारों ओर से और 'आवरण' का अर्थ है - वह घेरा, जो हमें प्रभावित करता है। अतः चारों ओर व्याप्त वह परिवेश, जिससे हम घिरे हुए हैं और जो हमारी जीवनचर्या एवं कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है, पर्यावरण कहलाता है।'
स्थानांगसूत्र के अनुसार, हमारे आसपास जो कुछ मौजूद हैं, वे जड़ और चेतन ही हैं, अतः कहा जा सकता है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, वनस्पति तथा अन्य सभी जीव एवं जड़ जगत्, जो प्राणी के जन्म एवं जीवन को प्रभावित करते हैं, पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं।
पर्यावरण एक बहुआयामी तत्त्व है, जिसे भगवान् महावीर ने चार दृष्टियों के समुच्चय के रूप में समझाया है। ये दृष्टियाँ हैं - द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव। 'द्रव्य' के आधार पर पर्यावरण में समस्त सजीव एवं निर्जीव पदार्थों का अन्तर्भाव होता है। क्षेत्र' की दृष्टि से यह लोकव्यापी होने से अतिविस्तृत है। 'काल' की दृष्टि से यह सार्वकालिक होने से शाश्वत् है। इसी प्रकार, “भाव' के आधार पर इसके आध्यात्मिक, भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक, वैचारिक आदि अनेक पक्ष हैं। अतः कहा जा सकता है कि पर्यावरण के अन्तर्गत मात्र मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु ही नहीं, अपितु अखिल ब्रह्माण्ड में अवस्थित दृश्य-अदृश्य , चर-अचर, सूक्ष्म-स्थूल , अनुकूल-प्रतिकूल आदि सभी पक्ष समाहित हैं।
यद्यपि पर्यावरण अतिव्यापक है, फिर भी संरचना के आधार पर इसके दो घटक हैं - (1) प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment)
- इसकी रचना में मानव की कोई भूमिका नहीं होती, यह स्वतः ही उत्पन्न होता है। हमारे चारों ओर उपस्थित पृथ्वी, जल, वायु, सूर्य, वन, पेड़-पौधे, प्राणी आदि इसके अन्तर्गत आते हैं। पर्यावरणविद् डॉ. निलोसे के अनुसार, “हम पर्यावरण की परिकल्पना जीवमण्डल (Biosphere) द्वारा भी करते हैं, जिसके अन्तर्गत जलमण्डल (Hydrosphere), स्थलमण्डल (Lithosphere) एवं वायुमण्डल (Atmosphere) के जीवन युक्त भागों का समावेश होता है। (2) मानवनिर्मित पर्यावरण (Man-made Environment)
इसकी रचना में मानव की अहम भूमिका होती है। प्राकृतिक पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभावों से बचने एवं अनुकूल प्रभावों का लाभ लेने के लिए मानव जिन वस्तुओं का निर्माण करता है, उनका समुच्चय ही मानवनिर्मित पर्यावरण कहलाता है। इसके अन्तर्गत भवन, उद्योग, मशीनें, वाहन, घरेलु उपकरण, शृंगार-प्रसाधन, वस्त्र, रेफ्रीजरेटर, वातानुकूलित-यन्त्र, जनरेटर, टी.वी., मोबाईल, बाँध, पुल, सड़क, रेलमार्ग आदि अनेकानेक वस्तुएँ आती हैं।
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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