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लकड़ी के ईन्धन पर ही निर्भर रहती है।30 ★ भूमि का बंजर होना – संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वन-विनाश के कारण
दुनिया की 25% भूमि रेगिस्तान में परिवर्तित हो चुकी है। ★ भू-क्षरण - दुनिया में मिट्टी की ऊपरी परत करीब 2600 करोड़ टन है, जो बरसात में जलधाराओं के कटाव (Erosion) आ जाने के कारण निरन्तर समुद्र में समा रही है। भारत में प्रति मिनट पाँच हैक्टेयर भूमि का क्षरण हो रहा है। प्रत्येक बरसात में एक हैक्टेयर भूमि में से 16.35 टन भूमि बह जाती है। यदि इस दशा में सुधार नहीं किया गया, तो अगले 20 सालों में एक तिहाई कृषि योग्य भूमि नष्ट हो जाने की आशंका है।32 याद रहे एक इंच मिट्टी की परत बनने में एक हजार वर्ष लगते हैं। ★ जलवायु परिवर्तन - संयुक्त राष्ट्र संघ की जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी सरकारी पेनल ने
अपनी वार्षिक-रिपोर्ट में सख्त चेतावनी दी है कि 'सारी दुनिया में हिमालय के ग्लेशियर सबसे तेजी से पिघल रहे हैं और अगर यही गति जारी रही, तो सन् 2035 या शायद और पहले ये विलुप्त भी हो सकते हैं'।33 * जनसंख्या वृद्धि - भारत की जनसंख्या सन् 2000 में 100 करोड़ तक पहुँच गई, जो विश्व
की जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत है। पिछले सौ वर्षों में जहाँ विश्व की जनसंख्या 2 अरब से 6 अरब अर्थात् 3 गुणा हुई, वहीं भारत की जनसंख्या 23 करोड़ से 1 अरब अर्थात् लगभग 5 गुणा हो गई। भारत की जनसंख्या सन् 2011 में लगभग 121 करोड़ हो चुकी है और अनुमान है कि यह सन् 2016 में 126.30 करोड़ तक पहुँच जाएगी। सन् 2045 तक भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक होगी। यदि समय रहते बढ़ती जनसंख्या पर रोक नही लगी,
तो इसके भयावह दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतने पड़ सकते हैं। ★ जैव विविधता को खतरा - संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में जीवों की लगभग 30 लाख प्रजातियों में से लगभग दस हजार प्रजातियाँ विलुप्त हो
चुकी हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। ★ खाद्यान्न संकट - सन् 2001-02 में भारत की जनसंख्या लगभग 102 करोड़ थी, जो बढ़कर
सन् 2020 में 136 करोड़ हो जाएगी। इतनी आबादी के पोषण के लिए लगभग 375 मिलियन टन खाद्यान्न एवं लगभग 225 टन सब्जी उत्पादन की जरुरत होगी, जो वर्तमान में क्रमशः 212. 85 एवं 88.62 मिलियन टन ही उत्पन्न होते हैं। खाद्यान्न उत्पादन का पिछला रिकार्ड देखने पर यह ज्ञात होता है कि जनसंख्या में वृद्धि होने से खाद्यान्न की आवश्यकता निरन्तर बढ़ रही है, लेकिन खाद्य-उत्पादन वृद्धि दर सन् 1990-91 के बाद से घट रही है, जो आगामी खाद्य-संकट का प्रतीक है, अतः स्थिति चिन्तनीय है।
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अध्याय 8: पर्यावरण-प्रबन्धन
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