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इनका अनावश्यक संग्रह न करें तथा संगृहीत वस्त्रों का पूर्ण सदुपयोग करें। 21) किसी भी पेड़ को काटें नहीं, यदि अवश्यंभावी हो, तो उसे स्थानान्तरित (Transplant) करें। 22) वन कर्म अर्थात् वन काटने आदि से सम्बन्धित व्यवसाय न करें। 23) 'दावाग्निदापन' अर्थात् वन जलाने, खेत जलाने आदि से सम्बन्धित कार्य न करें। 24) ‘स्फोटन कर्म' अर्थात् भूमि खनन से सम्बन्धित व्यवसाय भी न करें, क्योंकि इसमें गड्डे खोदने,
मलबा डालने आदि में अनेकानेक वनस्पतियों की भी हिंसा होती हैं। 25) 'रस वाणिज्य' अर्थात् शराब आदि मादक पदार्थों का व्यवसाय भी न करें। 26) कृषि में खरपतवार नाशक एवं कीटाणुनाशक दवाइयों का प्रयोग नहीं करना पड़े, ऐसा उपाय
करें। 27) बागवानी के समय पेड़-पौधों की अवांछनीय काट-छाँट से बचें। 28) ईन्धन के लिए लकड़ी का उपयोग न करें, वरन् सौर-ऊर्जा का प्रयोग करें। 29) जहाँ नीचे गिरे हुए फल से काम चलता हो, वहाँ पेड़, शाखा, टहनी, कच्चे फलों का गुच्छा
आदि नहीं तोड़ें। आशय यह है कि वानस्पतिक हिंसा में अल्पबहुत्व का विचार अवश्य करें। यह
नीति पर्यावरण के अन्य संसाधनों के संरक्षण के लिए भी उपयोगी है। 30) अंकुरित आहार ग्रहण न करें, क्योंकि इससे हम वनस्पति के विकास को उसके स्रोत पर ही
अवरुद्ध कर देते हैं और भविष्य में उससे मिलने वाले अधिक लाभ से भी वंचित रह जाते हैं। 31) अनाज आदि का आवश्यकता से अधिक भण्डारण न करें, जिससे नष्ट होने के पूर्व ही अनाज
का सदुपयोग हो सके। 8.6.6 त्रस जीव संरक्षण
पर्यावरण में सूक्ष्म-स्थूल , दृश्य-अदृश्य समस्त त्रस जीवों 29 (स्वेच्छापूर्वक गमनागमन करने में समर्थ जीवों) का संरक्षण अत्यावश्यक है, क्योंकि पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखने में प्रत्येक जीव का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हम सोच सकते हैं कि यदि त्रस जीवों का विनाश होता है, तो इससे सीधे-सीधे खाद्य-शृंखला एवं खाद्य-जाल (Food chain and Food web) प्रभावित होते हैं।24 इससे विनष्ट हुए त्रस जीवों पर आश्रित अनेकानेक जीवों का विनाश हुए बिना नहीं रह सकता। इसका अर्थ यह है कि एक जीव की हिंसा करने से हिंसा की परम्परा प्रारम्भ हो जाती है, जिसका असर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मनुष्य पर भी आता ही है। इसी दृष्टि से, भगवान् महावीर ने त्रस जीवों की हिंसा अर्थात् विनाश का स्पष्ट निषेध किया है। भगवतीसूत्र में त्रस जीवों की हिंसा के दुष्परिणाम को इस प्रकार समझाया है - केवल एक त्रस जीव की हिंसा करता हुआ प्राणी उससे सम्बन्धित अनेक जीवों की हिंसा करता है। 26 अतः हमें सूक्ष्म से सूक्ष्म त्रस जीवों की भी हिंसा से बचना चाहिए। भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित यह अहिंसा आधारित जीवनशैली पर्यावरणीय विकास एवं जैव-विविधता के संरक्षण के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
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अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन
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