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2) मद्यपान न करें। 3) वनस्पति से निर्मित अन्य नशीले पदार्थ, जैसे - अफीम, बीड़ी, तम्बाकु, गांजा, चरस, महुवा ___आदि का सेवन भी न करें। 4) विषैली वनस्पति का सेवन न करें। 5) बैंगन का सेवन न करें। 6) अधिक बीज वाले फल अर्थात् बहुबीजी फल न खाएँ, क्योंकि इनके भोजन से वनस्पति का
विकास बीज स्तर पर ही अवरुद्ध होकर नष्ट हो जाएगा। 7) तुच्छ फलों अर्थात् वे फल जिनमें खाने का भाग कम एवं फेंकने का भाग अधिक हो, उन्हें न
खाएँ, क्योंकि इससे वनस्पति का सदुपयोग कम और दुरुपयोग अधिक होगा, जैसे – बेर
आदि। 8) कच्चे फल, सब्जी, अनाज या उनसे निर्मित पदार्थों का अनावश्यक संग्रह न करें अन्यथा
कालान्तर में वे विकृत (चलित-रस) बन कर भक्षण के अयोग्य हो जाते हैं। 9) भोजन के अन्त में जूठन बिल्कुल नहीं छोड़ें एवं यथासम्भव थाली धोकर अवशिष्ट जूठन को पी
जाएँ। 10) अपशिष्ट पदार्थों , जैसे - सब्जी, फल के छिलके, रोटी, चावल आदि को कूड़ेदान में न फेंकें,
वरन् तत्काल गाय आदि पशुओं को व्यवस्थित तरीके से खिलाएँ। 11) जीवाणु युक्त या लीलन-फूलन युक्त पदार्थों , जैसे - आचार आदि का उपयोग न करें, क्योंकि
इससे न केवल वनस्पति की हिंसा होती है, वरन् स्वास्थ्य की दृष्टि से भी कोई लाभ नहीं
होता। 12) फूल या गुलदस्ते की भेंट न देकर ऐसी भेंट दें, जो जीवनोपयोगी बनें, जैसे – धार्मिक पुस्तक
आदि । 13) विवाह स्थल, गृह, दुकान, ऑफिस को फूलों से न सजाएँ। 14) घास पर न चलें। 15) निष्प्रयोजन पत्ती, फूल, टहनी या पौधों को नहीं तोड़ें। 16) इत्र, सेंट , पाउडर, हर्बल शैम्पू आदि का प्रयोग न करें। 17) कागज, पुस्तिका, पुस्तक, उत्तरपुस्तिका आदि का दुरुपयोग न करें, क्योंकि ये भी वनस्पति से
ही बनते हैं। 18) लकड़ी से निर्मित फर्नीचर, शो केस, अलमारी, पलंग , खिड़की, दरवाजे आदि का अनावश्यक
संग्रह न करें एवं पूर्व संचित का दुरुपयोग न करें। 19) लकड़ी में दीमक न लगे, इस हेतु उसका नियमित अन्तराल में प्रमार्जन एवं प्रतिलेखन करते
रहें। 20) कॉटन एवं सिन्थेटिक (Wood-pulp से निर्मित) वस्त्रों का उपयोग भी सावधानीपूर्वक करें,
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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