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दुष्परिणाम जानकर उसका पूर्णतया परित्याग करता है, वही विवेक (परिज्ञा) सम्पन्न मुनि है।208 आज भी जैन-परम्परा में यह नियम प्रचलित है कि साधु-साध्वी पंखे, कूलर, वातानुकूलित आदि यन्त्रों का, सुगन्धित सामग्रियों का एवं वाहनों आदि का उपयोग नहीं करते।
__सिर्फ साधु-साध्वी ही नहीं, गृहस्थों को भी वायु के उपयोग को सीमित करने का ही निर्देश है। जैनाचार में उन व्यवसायों के लिए प्रायः निषेध किया गया है, जो धूम्रोत्पादक हैं। धूम्र की अधिक मात्रा न केवल फलदार पेड़-पौधों के लिए, अपितु अन्य प्राणियों एवं मनुष्यों के लिए किस प्रकार हानिकारक है, यह बात वैज्ञानिक अनुसन्धानों से सिद्ध हो चुकी है। वायु-प्रदूषण का एक कारण फलों आदि को सड़ाकर उनसे शराब आदि मादक पदार्थों को बनाने वाला व्यवसाय भी है, जिसका जैन गृहस्थ के लिए निषेध है।209 उपासकदशांग में जिन 21 वस्तुओं अथवा श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र में जिन 26 वस्तुओं की मर्यादा करने का गृहस्थों को निर्देश दिया गया है, उनमें से कई ऐसी मर्यादाएँ हैं, जो वायुप्रदूषण को रोकने में सहायक हैं, जैसे - धूपविधि अर्थात् अगरबत्ती आदि धूपनीय सामग्रियों के उपयोग को सीमित करना,210 विलेपनविधि अर्थात् शरीर पर लेप करने वाले अगर, चन्दन, इत्र, सेंट आदि द्रव्यों की सीमा करना, जो वातावरण में कणीय-प्रदूषण (Suspended particles pollution) फैलाते हैं, वाहनविधि अर्थात् वाहनों की संख्या सीमित करना इत्यादि।
__ पर्यावरण के प्रदूषण में आज धूम्र छोड़ने वाले वाहनों का प्रयोग भी एक प्रमुख कारण है। यदि स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का रक्षण करना है, तो हमें सड़क, रेल, हवाई एवं समुद्री मार्गों को इस धूम्र-प्रदूषण से मुक्त रखने का प्रयास करना ही होगा। जैन मुनि के लिए बिना वाहन का प्रयोग किए पदयात्रा करने की जो परम्परा है, वह पर्यावरणीय प्रदूषण से मुक्ति एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार, “आज की हमारी उपभोक्ता संस्कृति में हम एक ओर एक फर्लाग भी जाना हो तो वाहन की अपेक्षा रखते हैं, तो दूसरी ओर डॉक्टर के निर्देश पर प्रतिदिन पाँच–सात कि.मी. टहलते भी हैं। यह कैसी आत्म-प्रवंचना है, एक ओर समय की बचत के नाम पर वाहनों का प्रयोग करना, तो दूसरी ओर प्रातःकालीन एवं सायंकालीन भ्रमण में अपने समय का अपव्यय करना? यदि मनुष्य मध्यम आकार वाले शहरों में अपने दैनन्दिन कार्यों में वाहनों का प्रयोग न करे, तो उससे दोहरा लाभ होगा। एक ओर ईन्धन एवं तत्सम्बन्धी खर्च बचेगा, तो दूसरी ओर पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा, साथ ही स्वास्थ्य भी अनुकूल रहेगा। प्रकृति की ओर लौटने की बात आज चाहे परम्परावादी लगती हो, किन्तु एक दिन ऐसा आएगा, जब यह मानव-अस्तित्व की एक अनिवार्यता
होगी।"212
वायु प्रदूषण एक अतिव्यापक तत्त्व है, जिसमें ध्वनि प्रदूषण, ताप-प्रदूषण, प्रकाश-प्रदूषण, रेडियोधर्मी-प्रदूषण, कणीय-प्रदूषण (Suspended particle Air Pollution), गैसीय-प्रदूषण (Gaseous Air Pollution) इत्यादि का समावेश हो जाता है। अतः वायु–संरक्षण का लक्ष्य इन सभी विभागों को प्रदूषण रहित करना है। 48
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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