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को प्रदान करना भी अनर्थदण्ड माना गया है | 200
आलोचना पाठ की निम्न पंक्तियों में अग्नि के विविध प्रयोगों को दुष्कृत माना गया है।
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भाठीगर कुंभार, लोह सोवनगरा । भाड भुंजा लिहालागरा ए ।। तापण शेकण काज, वस्त्र निखारण। रंगण ध रसवती ए ।। एणी परे कर्मादान, परे परे वाउ विराधिया
केलवी ।
उ
ए ।।
इस प्रकार, जैनाचार्यों ने अग्नि के प्रयोग का साधु के लिए सर्वथा निषेध करते हुए श्रावक के लिए आवश्यक हेतुओं से प्रयोग करने का निर्देश दिया है। यह पर्यावरण के समस्त घटकों, जैसे - ऊर्जा, भूमि, जल, वायु, वनस्पति, त्रस जीवों आदि के संरक्षण के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह बात जैनाचार्यों की अतिगहन दृष्टि की परिचायक है।
आगे, वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में अग्नि-संरक्षण के लिए उपयोगी और जैनाचार से अनुमत एक संक्षिप्त सूची दी जा रही है, जिसके निर्देशों का अनुपालन सभी को करना चाहिए.
वाहनों के प्रयोग को प्राथमिकता
1) वाहनों का मर्यादित प्रयोग करें एवं रात्रि की अपेक्षा दिवस दें ।
2 ) अनावश्यक घूमने-फिरने, सैर-सपाटे आदि पर नियन्त्रण रखें । 3) सामान्य दूरी तक जाने-आने के लिए वाहनों का प्रयोग न करें ।
4) चौराहों पर सिग्नल की प्रतीक्षा करते समय अथवा रास्ते में मित्रादि से बातचीत आदि करते हुए
गाड़ी का इंजन चालू न रखें।
5) कुव्यसन, जैसे- सिगरेट, बीड़ी, सीसा, लाउंज, गुटखा आदि का पूर्ण त्याग करें ।
6) कुव्यसन, जैसे त्याग करें।
7) सौर ऊर्जा, जो कि अचित्त होती है, उसका प्रयोग भोजन, पानी, रोशनी आदि के लिए करें । साथ ही, लकड़ी, कोयले, पेट्रोलियम गैस (LPG, CNG, PPG) आदि के प्रयोग को सीमित करें। इससे भोजन की पौष्टिकता भी अधिक रहेगी।
8) भोजन, नाश्ता आदि निर्धारित समय पर इस प्रकार करें कि बारम्बार उन्हें गर्म नहीं करना पड़े । 9) दिवस में इस प्रकार से भोजन, नाश्ता आदि का समय निर्धारित करें कि रात्रि अर्थात् सूर्यास्त के पश्चात् पकाने एवं आहार करने की कोई क्रिया न करनी पड़े।
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10) भवन-निर्माण इस प्रकार से करें कि इसमें प्राकृतिक प्रकाश एवं हवा मिलती रहे, जिससे अनावश्यक बिजली का प्रयोग नहीं करना पड़े।
अध्याय 8: पर्यावरण-प्रबन्धन
मद्यपान आदि, जिनके उत्पादन में अग्नि का प्रयोग होता है, उनका भी पूर्ण
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