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हो रहा है और पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़ों आदि जन्तुओं की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही हैं। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि यदि एक प्रजाति विलुप्त होती है, तो इसका सीधा प्रभाव उस प्रजाति पर आएगा, जो उससे उपकृत है। इस प्रकार, भगवान् महावीर का यह कथन कि एक त्रस-जीव की हिंसा से अनन्त-जीवों की हिंसा हो जाती है, स्वतः सिद्ध हो रहा है। यदि यह पारिस्थितिक असुन्तलन बढ़ता गया, तो इससे मनुष्य का जीवन भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रहेगा, क्योंकि वह भी कई कार्यों में त्रस-जीवों के उत्पादों एवं सेवाओं पर निर्भर है। अतः आवश्यकता है कि हम जैनाचार्यों द्वारा निर्दिष्ट अहिंसात्मक जीवनशैली को अपनाएँ, जिससे न केवल इन त्रस-जीवों की सुरक्षा होगी, वरन् स्वयं मानव जाति का अस्तित्व भी टिका रहेगा। कहा भी गया है - ‘से हु पन्नाणमंते बुद्धे आरम्भोवरए' अर्थात् 'जो प्रज्ञावान् होते हैं, वे हिंसा से उपरत हो जाते हैं। 70
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अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन
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