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परोपकार, दया, करुणा, सहिष्णुता, सन्तोष आदि शुभभावों के साथ जीते हैं, तो पर्यावरण स्वस्थ होने लगता है, जबकि ईर्ष्या, द्वेष , क्लेश, कलह, क्रोध आदि अशुभभाव होने पर पर्यावरण में उद्वेग उत्पन्न हो जाता है। 120
जैनाचार्यों का मूल उद्देश्य मानव को मानसिक (वैचारिक) प्रदूषण से दूर करना ही है। आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक शैलियों से उन्होंने भावात्मक विकास की शिक्षाएँ दी हैं एवं प्रायोगिक दृष्टि से मार्गानुसारी के पैंतीस गुण, अणुव्रत, प्रतिमा, महाव्रत आदि के निर्देश भी दिए हैं। ये पर्यावरण-प्रबन्धन की दृष्टि से नितान्त आवश्यक हैं।
भगवान् महावीर के उपदेशों का सार यही है कि हमारे विचारों में अनेकान्त हो, वाणी में स्याद्वादता हो और आचार में अहिंसा हो। इससे ही हमारा अंतरंग और बाह्य पर्यावरण सन्तुलित हो सकेगा। यह भी जैनआचारमीमांसा की विशेषता है। (6) विधि-निषेध रूप अहिंसा एवं पर्यावरण-प्रबन्धन121
पर्यावरण के सम्यक् विकास के लिए जैनआचारमीमांसा में अहिंसा के दो पक्षों की चर्चा मिलती है – विधेयात्मक एवं निषेधात्मक। सत्कार्यों में प्रवृत्ति होना विधेयात्मक (प्रवृत्त्यात्मक) अहिंसा है। उत्तराध्ययनसूत्र का यह निर्देश - 'मेरी प्राणिमात्र से मैत्री हो' विधि रूप अहिंसा की ही प्रेरणा देता है।122 इसी प्रकार असत्कार्यों से निवृत्ति को निषेधात्मक (निवृत्त्यात्मक) अहिंसा कहते हैं। आवश्यकसूत्र का यह निर्देश – 'मेरा किसी से वैर न हो' निषेध रूप अहिंसा का बोधक है।123
यद्यपि ये दोनों पक्ष परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं, फिर भी पर्यावरण-प्रबन्धन के लिए दोनों की महत्ता समान है। जैनदर्शन की यह विशेषता है कि यहाँ अहिंसा न तो सर्वथा निषेधपरक है और न सर्वथा विधिपरक। जैनाचार्यों के अनुसार, विधि एवं निषेध तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिनका समन्वय जीव एवं जगत् दोनों के लिए अत्यावश्यक है।
यदि हम एक ओर वृक्षारोपण करें और दूसरी ओर वनों की अन्धाधुंध कटाई करें, एक ओर बीमारियों की रोकथाम का उपाय करें और दूसरी ओर अस्वास्थ्यप्रद प्रदूषणकारी अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने पर रोक न लगाएँ, एक ओर धूम्रोत्पादक उद्योगों को बढ़ावा दें एवं दूसरी ओर विश्व-तापवृद्धि को रोकने का प्रयास करें तथा एक ओर पशु (गो) वध का निषेध करें एवं दूसरी ओर कत्लखाने (Slaughter House) खोलने की अनुमति प्रदान करें, तो कहाँ तक उचित होगा। वस्तुतः, हमारा प्रयास असफल होगा।
आज यही घटनाएँ घट रही हैं। एक ओर हम विकास के शिखर की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी ओर विनाश के गर्त में गिर रहे हैं। इसे ही आधुनिक पर्यावरणविद् अस्थिर विकास (Nonsustainable Development) कहते हैं।12
पर्यावरण के स्थिर विकास (Sustainable Development) के लिए हमें विधि एवं निषेध रूप 453
अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन
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