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दिखाता है। SO, एवं NO, की अधिकता को कैंसर, हृदयरोग, मधुमेह इत्यादि के लिए उत्तरदायी माना जाता है। कार्बन-मोनो-ऑक्साइड के अधिक सेवन से मृत्यु तक भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य प्रभाव भी हैं, जैसे - आँखों में जलन, सिर-दर्द, सिर चकराना, खाँसी, जुकाम इत्यादि। धर्म-कल्पद्रुम में बाह्य पर्यावरण से प्रभावित होने वाले शरीर के स्वभाव के सन्दर्भ में कहा गया है – 'इदं शरीरं बहुरोगमन्दिरम्' अर्थात् यह शरीर अनेकानेक रोगों से परिपूर्ण है, अतः खान-पान का और आचार-व्यवहार का सदैव ध्यान रखें।” यह भी कहा गया है कि 'न शरीरं पुनः पुनः' अर्थात् मानव-शरीर की प्राप्ति बार-बार नहीं होती, अतः इसका अधिक से अधिक सुन्दर उपयोग करो। इस प्रकार, हमें चाहिए कि हम वायु प्रदूषण से मुक्ति के उपायों का पालन करें, जिससे स्वास्थ्य संरक्षण हो सके, यही जैनाचार्यों के उपदेशों का आशय है। (6) कीटों एवं अन्य जीवों पर प्रभाव - वायु प्रदूषण से कुछ कीट विशेषतः मधुमक्खी एवं शलभ तथा अनेक कीटभक्षी, स्तनपोषी आदि बड़ी संख्या में मरते देखे जाते हैं। आधुनिक उपकरणों, जैसे - All out आदि का मच्छरों पर प्रभाव इसका सूचक है। इससे कई जीवों के श्वसन-तन्त्र भी प्रभावित होते हैं। अनेक पशुओं की हड्डियों तथा दाँतों में फ्लुओरोसिस (Fluorosis) हो जाता है। पशुओं का वजन घट जाता है तथा उनमें लंगड़ापन आ जाता है। (7) वनस्पति पर प्रभाव – वायु-प्रदूषण के कारण वनस्पति को सूर्य से मिलने वाले प्रकाश की मात्रा में कमी आ जाती है। इससे प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) मन्द हो जाता है। पत्तियों पर एकत्रित प्रदूषक पदार्थ पर्णरन्ध्रों को अवरुद्ध कर देते हैं, जिससे वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया मन्द पड़ जाती है। इज़राइल देश द्वारा वायु प्रदूषण का अध्ययन करने पर यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि आकाशीय धुंध के कारण कृषि उत्पादन में बीस प्रतिशत की कमी आई है।
इस सन्दर्भ में भी हमें जैन शिक्षाओं के अनुपालन की आवश्यकता है। (8) रेडियोधर्मी प्रभाव - परमाणु संयन्त्रों, परमाणु बम विस्फोटों एवं अन्य चिकित्सकीय कारणों से वातावरण में रेडियोधर्मी विकिरणें (अल्फा , बीटा एवं गामा) प्रसरित होती हैं, जो शरीर में जाकर अनेक रोग, जैसे -- रक्त कैंसर (Leukemia), हड्डी कैंसर (Bone cancer) आदि उत्पन्न करते हैं। इतना ही नहीं, डी.एन.ए. में पहुँचकर आनुवांशिक परिवर्तन तक कर देते हैं।
इनके घातक प्रभावों से बचने के लिए भी जैनाचार के सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी हैं। (७) ध्वनि प्रदूषण – यह भी वायु प्रदूषण का ही एक रूप है। अत्यधिक शोर से उत्पन्न असह्य स्थिति ही ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।
___ मानवचालित यन्त्रों, जैसे – वाहन, मशीन, घरेलु उपकरण, मनोरंजन के साधन, डी.जे. (लाउड स्पीकर्स), मोबाईल आदि एवं सामाजिक तथा पारिवारिक स्तर पर सम्मेलन, संगोष्ठी, भाषण, नारेबाजी,
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अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन
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