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8.3 पर्यावरण की समस्याएँ एवं पर्यावरण प्रदूषण के दुष्परिणाम
मनुष्य की यह मौलिक विशेषता है कि वह पर्यावरणीय संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग करने में सर्वाधिक समर्थ है। औद्योगिक एवं तकनीकी विकास के इस युग में वह अपनी क्षमताओं का मनमाना प्रयोग कर रहा है। उसने लाखों-करोड़ों वर्षों से संचित एवं संरक्षित संसाधनों के शोषण एवं प्रदूषण में आज कोई कसर बाकी नहीं रखी है, परन्तु इसका दुष्परिणाम यह है कि पर्यावरण-सन्तुलन भंग हो रहा है और स्थिति इतनी भयावह होती जा रही है कि मानव के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। भगवान् महावीर का यह सिद्धान्त विशेष स्मरणीय है – “सव्वेसिं जीवियं पियं, नाइवाएज्ज कंचणं' अर्थात् 'हे मानव! जीवन सभी को प्रिय है, अतः किसी के जीवन को मत छीनो।22 इस सिद्धान्त में एक गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है – 'जीववहो अप्पवहो' अर्थात् दूसरों की हिंसा अपनी हिंसा का कारण है। अध्ययन द्वारा यह पाया गया है कि विगत पाँच हजार वर्षों में पृथ्वी पर मात्र तीन सौ वर्ष ही ऐसे रहे, जब पूर्ण शान्ति रही। शेष वर्षों में पृथ्वी के किसी न किसी भाग में संघर्ष, लड़ाई या युद्ध होते रहे। निश्चित ही हमारा अतीत गरिमामय नही रहा। 24 आज भी यही स्थिति निर्मित हो रही है कि मानव सर्वनाश करके स्वनाश की तैयारी में जुटा हुआ है अर्थात् अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारने की भूल कर रहा है।
आइए, इक्कीसवीं शताब्दी के सम्भावित खतरों पर एक दृष्टि डालें - ★ जल-संकट – वर्तमान में बोतलबन्द जल के व्यवसाय में विश्व के करीब 30 देश संलग्न हैं, जिनसे प्रतिवर्ष 13 लाख करोड़ रूपए का व्यवसाय हो रहा है। यदि दुनिया जानकर भी अनजान रही, तो इस शताब्दी में पेयजल संकट को लेकर मारकाट मचेगी, अन्तर्राज्यीय जलविवाद बढ़ेंगे, सन् 2050 तक 60 देशों की 7 अरब जनता भीषण जल-संकट से जूझेगी और अन्त में विश्वयुद्ध का कारण भी जल ही बनेगा। वनों की कटाई - जहाँ अतीत में भारत का 80% भूभाग वनाच्छादित था, वहीं वर्तमान में वनों की तीव्र कटाई होने से 1987-89 में वह मात्र 19.5% रह गया था, लेकिन हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तुत उपग्रह-चित्रों के अनुसार, अब केवल 8% भू-भाग ही वनाच्छादित है।" आज भी वन-विनाश की गति 15 लाख हैक्टेयर प्रतिवर्ष है। यदि यही सिलसिला जारी रहा, तो मौजूद वनों के 4-8% क्षेत्र सन् 2020 तक एवं 17-35% क्षेत्र सन् 2040 तक नष्ट हो जाएँगे। सन् 2040 तक 20 से 75 दुर्लभ वन प्रजातियाँ भी क्रमशः नष्ट होने
लगेंगी।29 ★ जलाऊ लकड़ी की माँग - पर्यावरण और वन मंत्रालय के अनुसार, शताब्दी अन्त तक देश में प्रतिवर्ष 33 करोड़ टन लकड़ी के ईन्धन की जरुरत होगी, जिसे वर्तमान वन्य स्थिति को देखते हुए किसी भी प्रकार से पूरा नहीं किया जा सकता। आज देश की बहुत बड़ी आबादी
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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