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Relationship Between Stress and Job Performance
(तनाव एवं कार्यक्षमता का सम्बन्ध)
High
Too little stress &
Low performance (अत्यल्प तनाव, अल्प कार्य)
Optimal Stress/Performance
Too much stress &
Low performance (अत्यधिक तनाव, अल्प कार्य)
Performance
(कार्य)
Low
Low
Stress Level Boredom, Apathy
High Motivation, & Lethargy
High energy & Alertness (ऊब, अनिच्छा एवं उदासी) | (उच्च अभिप्रेरण, उच्च ऊर्जा
एवं सजगता)
High Panic, Collapse & Indecisiveness (कष्ट, शिथिलता एवं
अनिर्णायकता)
जैनदृष्टि के अनुसार, अप्रशस्त तनाव को साधना के द्वारा कम करते जाना चाहिए। यदि विवेकपूर्ण तरीके से अप्रशस्त तनाव को क्रमशः कम किया जाए, तो इससे मानसिक ऊब या अरुचि नहीं, अपितु प्रसन्नता एवं ताजगी का अनुभव होता है।
जैनशास्त्रों में जैनमुनि एवं चक्रवर्ती के सुखों की तुलना करते हुए कहा गया है – सम्पूर्ण आसक्तियों से मुक्त एवं प्रसन्नता से युक्त साधक को जैसा सुख मिलता है, वैसा सुख चक्रवर्ती को भी नहीं मिल सकता। अन्यत्र यह भी कहा गया है कि राग-द्वेषरहित साधक को जो सुख प्राप्त होता है, उसके अनन्तवें भाग की समानता भी चक्रवर्ती का सुख नहीं कर सकता। इससे स्पष्ट है कि जीवन-प्रबन्धक को साधना के द्वारा अप्रशस्त तनाव का अल्पीकरण करते जाना चाहिए।
जैनशास्त्रों में यद्यपि अप्रशस्त तनाव को कम करते जाने की प्रेरणा बारम्बार दी गई है, तथापि एक निश्चित भूमिका में जी रहे साधक को अपनी भूमिकानुसार प्रवृत्ति एवं निवृत्ति का सन्तुलन बनाने का सदुपदेश भी दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि जीवन-प्रबन्धक को सामान्य (मध्यम) स्थिति में रहते हुए क्रमशः तनाव के अल्पीकरण का प्रयास करते रहना चाहिए, जिससे उसकी अंतरंग अभिप्रेरणा (Motivation), ऊर्जा (Energy) एवं सजगता (Alertness) बनी रहे और कार्यक्षमता अधिकतम हो सके।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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