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(5) पूर्णविकार मुक्त - यह मानसिक-प्रबन्धन का उत्कृष्ट स्तर है, जिसमें साधक शनैः-शनैः आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं तज्जन्य मानसिक-विकारों से मुक्त होता जाता है, उसके राग-द्वेष एवं कषाय-भाव पूर्ण क्षय को प्राप्त होते हैं, जिससे वह परमसुख एवं आनन्द की अनुभूति करता है। वह न केवल अशुभ मनोभावों, अपितु शुभ मनोभावों से भी परे जाकर शुद्ध भावों में रमण करता है। इस परिपूर्ण दशा को जैन-परम्परा में 'अरिहंत' एवं 'सिद्ध' अवस्था कहा जाता है। 7.7.3 मानसिक-प्रबन्धन के उत्तरोत्तर विकास की तकनीक
मानसिक-प्रबन्धन में एक स्तर से दूसरे स्तर में जाने के लिए मुख्यतया दो तकनीक प्रयुक्त होती हैं - (1) परिवर्तन-तकनीक (Diversion Technique)
परिवर्त्तन तकनीक के अन्तर्गत विकारों का उन्मूलन करने के बजाय विचारों एवं व्यवहारों का विषयान्तरण किया जाता है, जैसे - घर में क्लेश होने पर शुभ स्थानों पर जाकर आराधना करना आदि। यह तकनीक दो प्रकार की होती है - (क) व्यावहारिक या लौकिक तकनीक – यह लोक-प्रचलित तकनीक है, जैसे – संगीत सुनना, नृत्य करना, टी.वी. देखना आदि। इसके पुनः दो भेद किए जा सकते हैं - 1) अनुचित तकनीक – जो मानसिक विकारों को समाप्त करने वाली प्रतीत तो होती है, लेकिन इसका प्रयोग करने के बाद मानसिक, शारीरिक, सामाजिक आदि सभी विकृतियाँ कम होने के बजाय और अधिक बढ़ जाती हैं। यह निम्नलिखित व्यसनों या बुरी आदतों के रूप में पहले तो व्यक्ति को मस्त करती है, फिर व्यस्त करती हैं और तत्पश्चात् त्रस्त करती हुई अन्ततः अस्त कर देती हैं। ★ मादक पदार्थों का सेवन
★ वेश्यावृत्ति एवं अतिसम्भोग ★ धूम्रपान एवं गुटकादि का सेवन
★ अतिनिद्रा एवं आलस्य ★ अत्यधिक आहार
★ अतितर्क एवं वाद-विवाद करना इत्यादि। ★ समाज से अलग-थलग हो जाना
जैनाचार्यों ने इसे अनुचित ठहराकर दृढ़ता से इसका प्रतिषेध किया है। 2) उचित तकनीक - यह सामान्यतया लोक में मान्य तकनीक है। आधुनिक मनोविज्ञानी भी इसकी अनुशंसा करते हैं। इसमें योग, प्राणायाम आदि सात्विक वृत्तियों के साथ-साथ मनोरंजन, क्रीड़ा, व्यायाम, सैर-सपाटे आदि भोगप्रधान वृत्तियाँ भी समाविष्ट हो जाती हैं। यद्यपि ये वृत्तियाँ उचित प्रतीत होती हैं, किन्तु इनसे भी स्थायी समाधान नहीं मिलता और न ही इनसे धार्मिकता एवं नैतिकता की शिक्षा भी प्राप्त होती है। जैनाचार्यों ने इसीलिए इनसे ऊपर उठकर कुछ पद्धतियों का निर्माण किया है, जिनकी चर्चा आगे की जा रही है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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