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आसपास के पदार्थों द्वारा निर्मित परिस्थितियों से प्रभावित हो जाता है, तब उसकी स्वाभाविक अवस्था चलायमान होने लगती है और एक विशेष प्रकार का बल या दबाव उसमें उत्पन्न हो जाता है। जैन-परम्परा में स्वभाव से विकृत होने वाली इस अवस्था को 'विभाव-दशा' कहा गया है। इस विभाव दशा को उत्तेजित करने वाले वस्तु के अंतरंग दबाव या बल को तनाव (Stress) कहा जा सकता है। 7.3.2 तनाव की परिभाषा एवं उसकी सर्वव्यापकता
जैनदर्शन के अनुसार, तनाव एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है, जो व्यक्ति (चेतन) एवं वस्तु (जड़) सभी में क्रियाशील रहती है, जैसे - वैयक्तिक तनाव
वस्तुगत तनाव 1) भावात्मक तनाव : क्रोध, भय, चिन्ता आदि 1) प्राकृतिक तनाव : भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी,
बाढ़, अतिवृष्टि आदि 2) मानसिक तनाव : अस्थिरता, चपलता आदि 2) कृत्रिम (मानवकृत) तनाव : यह अनेक प्रकार का 3) शारीरिक तनाव : बेचैनी, क्षुधा, तृष्णा, रोगादि है, जैसे - इलास्टिक को खींचना या लोहे की
सलाख को मोड़ना आदि
चूँकि जीवन-प्रबन्धन का सम्बन्ध वैयक्तिक तनाव-प्रबन्धन से है, अतः आगे वैयक्तिक तनाव की चर्चा की जाएगी। तनाव की परिभाषा : वैयक्तिक जीवन के सन्दर्भ में ★ रोजन एवं ग्रेगरी के अनुसार – 'वह बाह्य तथा आन्तरिक अनिष्टकारी एवं वंचनकारी स्थिति, जिसके साथ समायोजन (Adjustment) कर पाना व्यक्ति के लिए अत्यधिक कष्टकर होता है,
उसे प्रतिबल या तनाव कहते हैं।' ★ गेट्स एवं अन्य के अनुसार61 – 'तनाव असन्तुलन की वह दशा है, जो प्राणी को अपनी
उत्तेजित दशा का अन्त करने हेतु कोई कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।' ★ बेरॉन के अनुसार62 – 'तनाव एक ऐसी बहुआयामी प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के दैहिक एवं मनोवैज्ञानिक वृत्तियों को विघटित करने वाली अथवा विघटित करने की कल्पना कराने वाली
घटनाओं (Stimulents) के प्रति एक अनुक्रिया (Response) के रूप में उत्पन्न होती है।' ★ आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार - ‘जब किसी भी पदार्थ पर पड़ने वाले दाब से पदार्थ के आकार में परिवर्तन हो जाता है, तो उसे तनाव या तान कहा जाता है।'
इस प्रकार, सभी विचारकों ने परिस्थिति या घटना के प्रति की गई अनुक्रिया (Response) को तनाव के रूप में प्रतिपादित किया है। 377
अध्याय 7 : तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन
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