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मन के सुव्यवस्थित प्रयोग का विशिष्ट महत्त्व है ।
(5) मन के अन्य पहलू
★ मन का तात्त्विक स्वरूप है ।1
★ मन का अस्तित्व
★ मन की उत्पत्ति
★ मन का परिमाण
(विषय) मन एक काल एक ही विषय को ग्रहण करता है । 13
★ मन की योग्यता मन मूर्त-अमूर्त समस्त द्रव्यों को ग्रहण कर सकता । साथ ही यह जहाँ बाह्य वस्तुओं को अपना विषय बनाता है, वहीं आभ्यन्तर पदार्थ अर्थात् आत्मा एवं उसके भावों को भी ग्रहण कर सकता है। इतना ही नहीं, आध्यात्मिक विकास की यात्रा में यह मन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र के प्रकटीकरण में उत्तम करण बनने की योग्यता भी रखता है।
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मन पुद्गल परमाणुओं के पिण्ड रूप मनोवर्गणाओं से निर्मित होता
★ मन की द्विपक्षता
मन बाह्य विषयों एवं आत्मा के मध्य एक कड़ी के रुप में कार्य करता है । एक ओर यह श्रुत- दृष्ट विषयों को आत्मा तक पहुँचाता है, तो वहीं दूसरी ओर यह आत्मा के आदेशों का प्रसारण भी करता है।
मन अनित्य है, नित्य नहीं ।
मन 'अंगोपांग नामकर्म' के उदय से प्राप्त होता है। 12
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★ मन की भूमिका मन आत्मा के कर्मचारी के समान है। आत्मा के भावों के अनुसार यह कार्य करता है। जब आत्मा में निषेधात्मक भावों (Negative Thoughts ), जैसे – क्रोध, आवेश, भय आदि की प्रबलता होती है, तो मन भी अप्रयोजनभूत, अनुपयोगी एवं अहितकर विचारों में विचरने लगता तथा जब आत्मा में विधेयात्मक भावों (Positive Thoughts ), जैसे - शान्ति, अभय आदि का प्रवाह बढ़ता है, तब मन में भी चिन्तन की गहराइयाँ एवं व्यापकता में अभिवृद्धि होने लगती हैं।
क्षमा,
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( 6 ) मन की अवस्थाएँ जैसा कि पूर्व में बताया गया है, जैनदर्शन में मन की चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता है, जो मन - प्रबन्धन के लिए उचित - अनुचित के विश्लेषण का आधार 45
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(क) विक्षिप्त मन यह मन की अस्थिर अवस्था है। इसमें संकल्प - विकल्प या विचारों की भाग-दौड़ मची रहती है। अतः इस अवस्था में मानसिक-शान्ति का अभाव होता है ।
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(ख) यातायात मन यह मन की आंशिक स्थिरता की अवस्था है, जिसमें मन कभी बाह्य विषयों की ओर चला जाता है, तो कभी प्रबन्धित होकर अन्दर स्थिर होने का प्रयत्न करता है। यह मन-प्रबन्धन की प्रारम्भिक अवस्था है।
(ग) श्लिष्ट मन यह मन की स्थिर अवस्था है, जिसमें मन अनुचित विषय नहीं, उचित विषयों का आलम्बन लेता है। इसमें जैसे-जैसे स्थिरता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे आनन्द भी बढ़ता जाता है । अध्याय 7: तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन
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