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3) स्थापना सत्य - अंकादि विशेष प्रतीकों के माध्यम से जो अर्थ समझा जाता है, जैसे – नोट
के ऊपर 1000' का मुद्रण ‘रूपए एक हजार' की प्ररूपणा करता है। यह स्थापना सत्य है। 4) नाम सत्य – गुण अथवा कार्य से सुमेल न होने पर भी नाम के आधार पर प्रयुक्त भाषा, जैसे
- डरपोक होते हुए भी किसी का नाम ‘बहादुर सिंह' होना। 5) रूप सत्य – केवल वेशभूषा आदि बाह्य स्वरूप के आधार पर प्रयुक्त भाषा, जैसे -- साधु का
वेश धारण करने वाले को साधु कहना। 6) प्रतीत्य सत्य - किसी अन्य वस्तु की अपेक्षा से सत्य रूप में मान्य भाषा, जैसे – जहाँगीर को __पुत्र कहना, अकबर की अपेक्षा से न कि शाहजहाँ की अपेक्षा से। 7) व्यवहार सत्य – लोकव्यवहार की अपेक्षा से सत्य रूप में मान्य भाषा, जैसे – ‘घी की कटोरी'
कहना। वस्तुतः, कटोरी घी से निर्मित नहीं है, कटोरी तो स्टील की है। फिर भी अभेद विवक्षा
से ऐसा कहना व्यवहार सत्य है। 8) भाव सत्य - वस्तु के किसी विशिष्ट गुण-धर्म के आधार पर कथन करना, जैसे – 'सब्जी
खारी है'। यद्यपि सब्जी में तीखापना, मीठापना आदि भी है, लेकिन नमक की अधिकता के
कारण ऐसा कहना भी सत्य है। 9) योग सत्य - एक के योग अर्थात् सम्बन्ध के आधार पर दूसरे को लक्षित करना, जैसे – दण्ड
के योग से किसी को दण्डी कहना। 10)औपम्य सत्य – उपमा से जो भाषा कही जाए, जैसे – 'राहुल तो सिंह के समान है'।
उपर्युक्त भाषाओं का प्रयोग जैनाचार्यों के द्वारा अनुमत है, क्योंकि ये सभी सत्य की श्रेणी में आती हैं। (ख) प्रज्ञापनासूत्र में वर्णित व्यवहार भाषा या असत्यासत्य भाषा के बारह प्रकार129
1) आमंत्रणी - सम्बोधनसूचक भाषा, जैसे – हे देवदत्त ! विवाहोत्सव में आना। 2) आज्ञापनी - दूसरे को कार्य में प्रवृत्त करने वाली अर्थात् आज्ञा देने वाली भाषा, जैसे - आप
रूकिए, आप चलिए, आप खाइए आदि । 3) याचनी - किसी वस्तु को माँगने के लिए प्रयुक्त भाषा, जैसे – 'कृपया यह मुझे दीजिए'। 4) पृच्छनी - किसी विषय में किसी से प्रश्न करने वाली भाषा, जैसे – 'इस शब्द का अर्थ क्या
5) प्रज्ञापनी - विनीत शिष्य आदि के लिए प्रयुक्त उपदेश रूप भाषा, जैसे – 'व्यक्ति को
जीवन-प्रबन्धन अवश्य ही करना चाहिए'। 6) प्रत्याख्यानी - अमुक वस्तु का प्रत्याख्यान या निषेध करना, जैसे – 'आज तुम्हें एक घण्टे
तक मौन रहना है' अथवा 'आज मैं यह वस्तु तुम्हें नहीं दे सकता'। 7) इच्छानुलोमा - इच्छा को प्रकट करने वाली भाषा, जैसे - 'मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ, यदि आपकी इच्छा (अनुमति) हो तो', 'आप यह कार्य करें, ऐसी मेरी इच्छा है', 'इस कार्य के
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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