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रखा जा सकता है। इसी प्रकार, कभी यह नामकरण अन्य अर्थों में प्रचलित शब्दों, जैसे – रवि, शशि, छाया, इन्द्र आदि से किया जा सकता है, तो कभी यह नामकरण अप्रचलित शब्दों, जैसे - रिंकू, पिंकू, मोनु तथा टोनु आदि से भी कर दिया जाता है। यह स्मरण रखना चाहिए कि नाम-निक्षेप में कोई भी शब्द पर्यायवाची नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसमें एक शब्द से एक ही अर्थ का ग्रहण होता है। श्रोता के लिए यह आवश्यक है कि वह नाम श्रवण करके नियत वस्तु को समझ सके और व्युत्पत्तिपरक अर्थ के अनुरूप ही नाम हो, ऐसा मताग्रह न रखे। 2) स्थापनानिक्षेप11 – किसी अनुपस्थित पदार्थ को उपस्थित पदार्थ के माध्यम से समझना स्थापनानिक्षेप कहलाता है। आशय यह है कि किसी वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र में उस मूलभूत वस्तु का आरोपण कर उसे उस नाम से अभिहित करना स्थापनानिक्षेप होता है। उदाहरण के लिए गाय की आकृति के खिलौने को गाय कहना, कृष्ण की प्रतिमा को कृष्ण कहना और नाटक में राम, रावण आदि का अभिनय करने वाले पात्रों को राम, रावण आदि कहना।
यह स्थापना दो प्रकार की होती है - तदाकार एवं अतदाकार। मूल वस्तु की आकृति जैसी है, वैसी ही आकृति वाली वस्तु में उस मूल वस्तु का आरोपण करना 'तदाकार स्थापनानिक्षेप' कहलाता है, जैसे – भगवान् महावीर की मानवाकार मूर्ति को भगवान् महावीर कहना आदि। जो वस्तु अपनी मूल वस्तु की प्रतिकृति तो नहीं है, फिर भी उसमें मूल-वस्तु का आरोपण करना 'अतदाकार स्थापनानिक्षेप' कहलाता है, जैसे - शतरंज की मोहरों को हाथी, घोड़ा, राजा या वजीर कहना आदि। श्रोता को चाहिए कि वह न तो स्थापना को मूल-वस्तु मानने की भूल करे और न स्थापनानिक्षेप का सर्वथा निषेध करे। सही श्रोता मूल वस्तु को समझने के लिए स्थापनानिक्षेप को साधन के रूप में प्रयोग करे, यही उचित है, क्योंकि स्थापनानिक्षेप मूलवस्तु को समझने का सशक्त दृश्यमान माध्यम है। 3) द्रव्यनिक्षेप12 - वस्तु की भूतकालीन अथवा भविष्यकालीन अवस्था को वर्तमान में भी उसी नाम से पहचानना द्रव्यनिक्षेप कहलाता है, जैसे - सेवानिवृत्त अध्यापक को 'मास्टरजी' कहना अथवा वर्तमान में वकालत की शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थी को 'वकील साहब' कहना इत्यादि। श्रोता को चाहिए कि वक्ता द्वारा प्रयुक्त द्रव्यनिक्षेप को वस्तु की वर्तमानकालीन अवस्था मानने की भूल न करे। वह द्रव्यनिक्षेप का प्रयोग प्रयोजन के अनुसार करे, जिससे वस्तु के भूत अथवा भविष्य को आधार बनाकर वस्तु की सही समझ विकसित की जा सके। 4) भावनिक्षेप13 – जिस स्थिति में वस्तु वर्तमान में विद्यमान है, उसे वैसा ही कहना, भावनिक्षेप कहलाता है, जैसे – सेवाकार्य में रत व्यक्ति को सेवक कहना। सम्यक् श्रोता के लिए यह उचित है कि वह भावनिक्षेप से निरुपित वस्तु को वर्तमान अवस्था में तदनुरूप ही समझे। वस्तुतः, नाम, स्थापना और द्रव्यनिक्षेप तो मूल वस्तु को समझने के लिए साधनरूप है, जबकि भावनिक्षेप साध्यरूप है। सम्यक् श्रोता साधनरूप तीनों निक्षेपों का श्रवण करके साध्य रूप वस्तु को भावनिक्षेप से समझ लेता है और
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अध्याय 6 : अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
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