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6. 7 भाषिक - अभिव्यक्ति - प्रबन्धन : प्रायोगिक अध्ययन
इस प्रकार, हमने देखा कि व्यावहारिक जीवन में सुव्यवस्थित, सन्तुलित एवं समीचीन वाणी व्यवहार के लिए जैनाचार्यों ने अनेकानेक सिद्धान्त एवं निर्देश दिए हैं। इनका यथाशक्ति परिपालन कर जीवन को अधिक आनन्दमय एवं उन्नत बनाया जा सकता है। यहाँ पर उदाहरणस्वरूप एक प्रारूप (Model) प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसका पालन करके कोई भी व्यक्ति अपना अभिव्यक्ति -प्रबन्धन सफलतापूर्वक कर सकता है
1) गाली-गलौज युक्त अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना ।
2) 'तू' के स्थान पर 'तुम' का और सम्भव हो तो 'आप' का प्रयोग करना ।
चाहे व्यक्ति उम्र, पद, शिक्षा, सम्पन्नता, प्रसिद्धि, प्रतिभा एवं प्रतिष्ठा में निम्न क्यों न हो, उसके साथ अपमानजनक एवं तुच्छतापूर्ण वाणी-व्यवहार कतई नहीं करना, उल्टा उचित सम्मान एवं प्रोत्साहन देकर उसका विश्वास जीतना ।
4) जोर-जोर से नहीं बोलना ।
5) अति नहीं बोलना ।
6) अमर्यादित हँसी-मजाक नहीं करना, बल्कि व्यक्तित्व को गम्भीर बनाना ।
7) अशुद्ध उच्चारण, पुनरुक्ति दोष, तीव्र गति से बोलने एवं अस्पष्ट बोलने से बचना ।
8) किसी को भी डराने-धमकाने वाली अभद्र वाणी का प्रयोग नहीं करना, जैसे हाथ-पैर तोड़ दूँगा, जबान खींच लूँगा, तुझे देख लूँगा, जान मार डालूँगा, हड्डी-पसली तोड़ दूँगा
इत्यादि ।
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9) किसी पर भी व्यंग्य नहीं कसना ।
10) प्रार्थना एवं याचना हेतु आदर सूचक शब्दों का प्रयोग अवश्य करना, जैसे -
जरा अपना पेन देना
क्या आप अपना पेन देंगे?
i)
ii)
अशुद्ध
शुद्ध
iii) Would you give me your pen, please?
शुद्ध
11) निवेदनवाची वाक्यों को आज्ञावाची अथवा सूचनावाची शैली में प्रयोग नहीं करना,
जैसे
i)
पिताजी! मैं आज घूमने जाऊँगा
पिताजी! क्या मैं आज घूमने जाऊँ? Papa! May I go for outing today?
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ii) तुम आज मेरा काम कर देना
क्या आप आज मेरा काम कर देंगे? Will you please complete my 12) कार्य - पूर्ति के पश्चात् आभार व्यक्त करना,
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work today?
जैसे
अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
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अशुद्ध
शुद्ध
शुद्ध
अशुद्ध
शुद्ध
शुद्ध
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