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6.6.4 जीवन में वाणी का सम्यक् प्रयोग
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रायः व्यापार-व्यवसाय, कोर्ट-कचहरी, घर-परिवार, समाज एवं सरकारी कार्यालयों आदि में असत्य और सत्यासत्य भाषा का ही बोलबाला है। एक आम आदमी सिर्फ पढ़ना-लिखना-बोलना आ जाने को ही पूर्ण मान लेता है और सम्यक् लिखने-बोलने के प्रशिक्षण एवं प्रयोगों की उपेक्षा ही कर देता है। सामान्यतौर पर व्यक्ति असत्य भाषण के दोष को स्वीकार नहीं करता, जबकि जैनाचार्यों ने तो असत्यमिश्रित सत्य को भी दोषपूर्ण अभिव्यक्ति माना है । यदि आज समाज में व्याप्त कई बुराइयों पर नजर डाली जाए, तो इनमें असत्य एवं सत्यासत्य भाषाओं का प्रमुख योगदान है। समाज में परस्पर प्रेम और सौहार्द्र का वातावरण खण्डित हो रहा है, आत्मीयता घट रही है, सहिष्णुता एवं समता मृतप्रायः हो गई हैं एवं स्वस्थ संवाद का ह्रास हो रहा है। इसका मूल कारण इन दोनों भाषाओं का अत्यधिक प्रयोग होना है, जिनका जैनाचार्यों ने सर्वथा निषेध किया है।
यह ठीक है कि वर्त्तमान में असत्य एवं सत्यासत्य (मिश्र) भाषा का प्रयोग बढ़ने से सामाजिक मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है, साथ ही यह भी उतना ही सही है कि व्यक्ति ने विचारों की कुटिलता के वशीभूत होकर सत्य एवं व्यवहार भाषा का दुरुपयोग भी खूब किया है। यह भी सामाजिक आदर्शों को गिराने वाला अत्यन्त प्रभावी कारण है । सूत्रकृतांग में व्यक्ति को इन्हीं कमजोरियों से बचने के लिए कहा गया है कि 'वह सत्य को न छिपाए और न तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करे । ' व्यक्ति का व्यक्तित्व स्वच्छ - पारदर्शी स्फटिक समान निर्मल होना चाहिए। इसमें दुराशय से दूषित सत्य एवं व्यवहार भाषाओं का भी सर्वथा निषेध होना चाहिए ।
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उपर्युक्त विसंगतियों से बचने के लिए इन चार भाषाओं का विवेक होना आवश्यक है। इसी उद्देश्य से दशवैकालिकसूत्र में सज्जनों के लिए निम्नलिखित भाषाओं का निषेध किया गया है 134
1) अवक्तव्य - सत्य भाषा - जो सत्य होते हुए भी कहने योग्य नहीं हो । 2) असत्य भाषा जो सत्य नहीं हो ।
3) सत्यासत्य भाषा जो सत्य और असत्य मिश्रित हो ।
4) अनाचीर्ण व्यवहार भाषा जो व्यवहार भाषा होते हुए भी आचरण - योग्य नहीं हो । उपर्युक्त भाषाओं को विविध उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है
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1) काणे को काणा, नपुंसक को नपुंसक, रोगी को रोगी, चोर को चोर नहीं कहना चाहिए ।' 2) स्नेहरहित, मर्मघाती, पीड़ादायी, कटुक, कठोर, अभ्याख्यानात्मक एवं चुगलखोरी रूप सत्य वचन भी नहीं बोलना चाहिए
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3) जिससे विद्रोह भड़क जाए, कलह हो जाए, किसी की हत्या हो जाए, ऐसा कोई वचन भी नहीं कहना चाहिए ।
4) किसी अपेक्षा से गुरुजनों या वृद्धों आदि के दोषों का वर्णन भी नहीं करना चाहिए। 137
अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
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