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3) जो आराधक-विराधक मिश्ररूप हो, वह सत्यासत्य भाषा - जो भाषा आंशिक रूप से
आराधक और आंशिक रूप से विराधक हो, वह आराधक-विराधकमिश्र भाषा कहलाती है। जैसे - किसी नगर में आज 150 बच्चों का जन्म हुआ हो, किन्तु किसी के पूछने पर कह देना कि सैकड़ों बच्चों का जन्म हुआ है। 125 आराधक-विराधक भाषा को ही सत्यासत्य भाषा समझनी
चाहिए। 4) जो न आराधक हो न विराधक, वह असत्यासत्य भाषा - जिस भाषा में आराधक, विराधक एवं आराधक-विराधक मिश्र लक्षण न हों, उसे 'असत्यासत्य भाषा' समझनी चाहिए, जैसे – 'हे मुने ! प्रतिक्रमण करो। स्थण्डिल का प्रतिलेखन करो' आदि ।126
अधिकांश लोग यह मानते हैं कि कही जाने वाली हर बात उचित ही होती है, तो कुछ लोग यह मानते हैं कि भाषा के केवल दो ही प्रकार हैं – सत्य एवं असत्य, जिनमें से सत्य बोलने योग्य है
और असत्य नहीं। किन्तु यह विचार भी पूर्णतः सही नहीं है। दशवैकालिकसूत्र में इन चार प्रकार की भाषाओं के सन्दर्भ में स्पष्ट कहा गया है कि127 -
चउण्हं खलु भासाणं, परिसंखायं पन्नवं ।
दोण्हं तु हिणयं सिक्खे, दो न भासिज्ज सव्वसो।। अर्थात् प्रज्ञावान् पुरूष चार प्रकार की भाषाओं को समझकर सत्य एवं व्यवहार (असत्यासत्य) भाषाओं का ही प्रयोग करें और असत्य एवं मिश्र भाषाओं को सर्वथा न बोलें। अतः असत्य भाषा और मिश्र भाषा का प्रयोग भाषिक-अभिव्यक्ति की क्षमता का सदुपयोग नहीं, वरन् दुरुपयोग है। इन दोनों से स्व–पर का अहित ही होता है। ये दुराशययुक्त एवं दुष्परिणामदायिनी होती हैं। इनसे ऐहलौकिक एवं पारलौकिक विनाश होता है।
सामान्यतया यह अनुभूत नहीं होता, फिर भी जीवन में इन अननुमत/अप्रयोज्य भाषाद्वय का प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता रहता है, इसीलिए जैनाचार्यों ने इनके स्वरूप को प्रज्ञापनासूत्र में विस्तार से स्पष्ट किया है। इन भाषाओं के विविध प्रकारों का वर्णन क्रमशः किया जा रहा है। (क) प्रज्ञापनासूत्र में उल्लिखित सत्य भाषा के दस प्रकार128 1) जनपद सत्य - विभिन्न प्रान्तों में प्रचलित विशिष्ट शब्दों से युक्त भाषा, जो इष्ट अर्थ का बोध
कराने वाली होती है, जैसे - हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रयुक्त 'अर्थ' शब्द तात्पर्यसूचक है और अंग्रेजी भाषी क्षेत्रों में प्रयुक्त 'अर्थ' (Earth) शब्द 'पृथ्वी' का बोध कराता है। अतः दोनों ही
सत्य हैं। 2) सम्मत सत्य - समस्त लोक में सम्मत होने के कारण सत्य रूप में प्रसिद्ध, जैसे - पंक से
उत्पन्न होने के कारण शैवाल, कीट आदि को 'पंकज' कहा जा सकता है. लेकिन लोक में कमल को ही 'पंकज' कहते हैं, अन्यों को नहीं। अतः यह सम्मत सत्य है।
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अध्याय 6 : अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
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