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(2) जल-प्रबन्धन
जल और स्वास्थ्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि जल दूषित होता है, तो कई प्रकार के रोगों का कारण बन जाता है। अतः शरीर-प्रबन्धन के लिए जैनाचार्यों के द्वारा निर्दिष्ट शुद्ध जल का प्रयोग करना आवश्यक है।
आज व्यक्ति के समक्ष जल के निम्नलिखित विकल्प हैं - 1) ओला 2) पहाड़ का बर्फ 3) फैक्टरी का बर्फ 4) फ्रीज का बर्फ 5) तालाब, नदी, कुएँ आदि का अनछना जल 6) सार्वजनिक स्थानों की टंकियों का जल 7) नल, बोरिंग आदि का अनछना जल 8) मिनरल वॉटर 9) एक्वागार्ड का जल 10) आर. ओ. (R.O.) का जल 11) छना हुआ जल 12) धोवन पानी 13) उष्ण जल (उबालकर ठंडा किया जल) 14) डिस्टिल्ड वॉटर 1) ओला201 – जैनशास्त्रों में इसका स्पष्ट निषेध है, बाईस प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों में इसे स्थान दिया गया है। इसके अनेक दोष हैं, जैसे -
★ यह असंख्य अप्काय-जीवों का पिण्ड है। ★ इसमें त्रस जीवों की विद्यमानता भी है। ★ पेय जल के रहते इसकी कोई उपयोगिता भी नहीं है। ★ वायु प्रदूषण से जहाँ कार्बन मोनो-ऑक्साइड आदि विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है और
अम्लवर्षा (Acid Rain) भी हो रही है, वहीं सिर्फ शौक के लिए ओला खाना कतई समझदारी नहीं है, क्योंकि यह विषरूप भी हो सकता है। ★ इससे जठराग्नि मन्द पड़ती है, अजीर्ण आदि की सम्भावना भी बढ़ती है। 2) पहाड़ का बर्फ - इसे भी ओले के समान ही दोषपूर्ण और त्याज्य जानना चाहिए।
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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