________________
6.4 भाषिक–अभिव्यक्ति का दुरुपयोग
सामान्यतौर पर मनुष्य तीन तरह से अपनी आत्माभिव्यक्ति कर सकता है
★ शारीरिक संकेतों के माध्यम से
★ भाषिक संकेतों के माध्यम से
★ शारीरिक एवं भाषिक दोनों संकेतों के माध्यम से
यद्यपि शारीरिक-संकेतों की तुलना में भाषिक - संकेतों का प्रभाव बहुत अधिक होता है, फिर भी यह विचारणीय है कि जिस साधन की प्रभावशीलता जितनी अधिक होती है, उसके प्रयोग में उतनी ही अधिक सावधानी रखना भी अपेक्षित है। अतीत से लेकर वर्त्तमान तक ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं, जिनमें भाषिक–अभिव्यक्ति के थोड़े से अनुचित प्रयोग ने भी अतिविकराल दुष्परिणाम प्रकट किए हैं। उदाहरणार्थ, वचन ने ही कैकेयी के निमित्त से राम को वनवास दिलाया, तो द्रौपदी के निमित्त से महाभारत का युद्ध भी कराया।
भाषा की नकारात्मक प्रभावशीलता (Effectiveness) के आधार पर ही किसी ने कहा है"
"
छुरी कैंची तलवार का घाव लगा सो भरा । लगा जख्म जबां का, वो रहता है हरा । ।
वाणी की इस शक्ति को देखते हुए प्रत्येक मनुष्य के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अभिव्यक्ति के दुष्प्रयोगों को समझे और इनसे होने वाले दुष्परिणामों से बचे। जैनाचार्यों ने अनेक स्थानों पर वाणी के दुरुपयोग या असंयम को स्पष्ट करते हुए उनसे सावधान रहने की शिक्षा दी है। वर्त्तमान युग में प्रचलित असंयमित वाणी - व्यवहार इस प्रकार हैं
313
(1) विकथा
प्रायः यह देखने में आता है कि व्यक्ति का अधिक समय अप्रासंगिक, अनुपयोगी एवं उद्देश्यविहीन वार्ताओं में ही व्यतीत हो जाता है। कभी राजनीति की, कभी देश-विदेश की, कभी भोजन की और कभी विपरीत लिंग वाले स्त्री या पुरूष की अनावश्यक चर्चाओं में व्यक्ति अपने अमूल्य समय का अपव्यय करता रहता है। इसे ही जैनाचार्यों विकथा अर्थात् विपरीत वार्ता कहा है और इसका निषेध भी किया है। 28
--
(2) आत्म-प्रशंसा
आज प्रायः एक अन्य वृत्ति बहुत तेजी से फैल रही और वह है आत्म- प्रशंसा की । व्यक्ति अपने सम्मान की चाह में सर्वत्र अपने ही गुणगान करता रहता है। इसे ही जैनाचार्यों ने मान - कषाय की वृत्ति कहा है और आजकल इसे Egocentric Expression कहते हैं । जहाँ आत्म-प्रशंसा है, वहाँ परनिन्दा होती ही है। जैनाचार्यों ने इस वृत्ति का निषेध करते हुए इसे निम्नस्तरीय कर्म माना है,
अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
9
www.jainelibrary.org