________________
निद्रा सम्बन्धी कतिपय नियम233
★ रात्रि में एक प्रहर बीतने के पश्चात् शारीरिक शिथिलता आने पर शयन के स्थान पर जाना। ★ शयन के पूर्व चैत्यवन्दन आदि करना, चौविहार आदि प्रत्याख्यान उच्चरना, पूर्वगृहीत व्रतों के ___ परिमाण को संक्षिप्त करते हुए देसावगासिक व्रत (14 नियम) लेना। ★ चार शरण स्वीकार करना, सभी जीवराशियों को खमाना, अठारह पाप-स्थानकों का त्याग ___ करना, सुकृत की अनुमोदना एवं दुष्कृत की गर्दा करना। ★ नवकार पाठ करके निम्न पद का तीन बार उच्चारण करते हुए सागारी अनशन ग्रहण करना।
आहार शरीर उपधि पचखं पाप अढार। मर जाऊँ तो वोसिरे, जीऊँ तो आगार ।।
अथवा जइ मे हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्स इमाइ रयणीए।
आहार-मुवहि देहं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं।। अर्थात् रात्रि में यदि देह का त्याग हो जावे, तो देह, आहार और अन्य उपधि – इन सबका मन, वचन, काया से मैं परित्याग करता हूँ। ★ सात भयों से मुक्ति के अभिप्राय से सात बार नवकार का चिन्तन करना। ★ ब्रह्मचर्य का अधिकाधिक पालन करते हुए बाईं करवट से शयन करना। ★ विवेकपूर्वक अल्पनिद्रा लेना और उठकर सात/आठ नवकार गिनना (अष्टकर्म निवारणार्थ) 234 ★ मन में स्त्री के शरीर की अशुचिता का चिन्तन करना।
62
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
288
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org