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10) आर. ओ. (R.O.) का जल – इसे भी एक्वागार्ड के जल की तरह समझना चाहिए। 11) छना हुआ जल - यह जल भारतीय संस्कृति में सर्वमान्य है, जैनाचार्यों ने भी उपर्युक्त स्रोतों से प्राप्त अनछने जल एवं बर्फादि की अपेक्षा इसे उत्तम कहा है। गृहस्थ जीवन के योग्य शारीरिक कार्यों, जैसे - स्नान, शौच, वस्त्र-प्रक्षालन आदि का निर्वाह इस छने हुए जल के द्वारा किया जा सकता
है।205
जैनआचारशास्त्रों में जल को छानने के लिए मोटे (गाढ़) वस्त्र को दुहरा करके उपयोग करने का निर्देश दिया गया है।206 वस्त्र की मोटाई इतनी होनी चाहिए कि सूर्य की किरणें आरपार न हो सके।
यह ज्ञातव्य है कि छने हुए पानी में त्रस जीवों का तो पूर्ण अभाव होता है, परन्तु अप्कायिक जीवों की विद्यमानता बनी रहती है, इसलिए जैनाचार्यों की सूक्ष्म दृष्टि में बाह्य कार्यों के लिए तो छना पानी उपयोग किया जा सकता है, किन्तु पीने के लिए उष्ण अथवा धोवन पानी का प्रयोग ही करना चाहिए। 12) धोवन पानी - जैनशास्त्रों में स्वास्थ्य के लिए हितकर एवं पूर्णतया जीवाणुरहित इक्कीस प्रकार के धोवन पानी का उल्लेख मिलता है, जिनका प्रयोग पेयजल के रूप में किया जा सकता है,207 जैसे - दाल, चावल आदि का धोवन पानी। 13) उष्ण जल - जैन-परम्परा में तीन उबाले वाला जल (ठंडा करके) पीने योग्य माना जाता है। यह जल हल्का होता है, कीटाणुमुक्त होता है और इसे आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान तथा भारतीय आयुर्वेद में भी सर्वोत्तम जल कहा गया है। 208 यह आसानी से उपलब्ध या तैयार हो सकता है और अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है। 14) डिस्टिल्ड वॉटर – जल का वाष्पीकृत रूप ही डिस्टिल्ड वॉटर है। यद्यपि यह अतिशुद्ध होता है, तथापि इसका दैनिक-व्यवहार में प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह महँगा पड़ता है। इसमें आवश्यक खनिजों (Minerals) का अभाव होने से चिकित्सक भी इसे अपेय मानते हैं।
- इस प्रकार, जल के सन्दर्भ में जैनाचार्यों ने जो निर्देश दिए हैं, उनका पालन करके शरीर का सम्यक प्रबन्धन किया जा सकता है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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