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1) आध्यात्मिक पक्ष
PRASARAM
2) पारिवारिक एवं
सामाजिक पक्ष 3) शारीरिक पक्ष 4) व्यावसायिक पक्ष 5) मनोरंजन पक्ष
देव-पूजा, गुरु-उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान, प्रतिक्रमण, आत्म-चिन्तन, तत्त्वाभ्यास, आत्म-ध्यानादि। बच्चों एवं बुजुर्गों की व्यवस्था, सभा आयोजन, मित्र, आगन्तुक सामाजिक एवं
NARALERTENS HARMA कौटुम्बिक समारोह सम्बन्धी आदि। दन्तधावन, शौच, स्नान, वस्त्र, भोजन, निद्रा इत्यादि। व्यवसाय एवं गृह सम्बन्धी। टी.वी., पेपर, गपशप आदि।
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उपर्युक्त पक्षों से सम्बन्धित नीतियाँ हर व्यक्ति की भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, क्योंकि सबके पूर्व संस्कार, वर्तमान रुचि, भविष्य के उद्देश्य, उम्र, कर्त्तव्य, पद, परिस्थितियाँ आदि अलग-अलग होती हैं, फिर भी जैनआचारशास्त्रों के अनुसार, सामान्य रूप से हमें चाहिए कि आध्यात्मिक पक्ष को मूल लक्ष्य बनाते हुए साधन रूप में शारीरिक , व्यावसायिक, पारिवारिक और सामाजिक पक्षों का प्रयोग करें, परन्तु मनोरंजन या अन्य पक्षों की आवश्यकता से धीरे-धीरे स्वयं को मुक्त करें। विभाग
इस विभागों का महत्त्व आध्यात्मिक पक्ष
साध्य शारीरिक, व्यावसायिक, पारिवारिक और सामाजिक पक्ष साधन . मनोरंजन एवं अन्य पक्ष
अनावश्यक एवं बाधक
SHRARE.
6) हमें साधन को साध्य के समान महत्त्व देकर साध्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अन्यथा हमारे
स्वभाव में असन्तोष, क्रोध, मान, ईर्ष्या, चिड़चिड़ाहट , अधीरता, भय, रोष, शोक, तनाव, दबाव आदि मनोविकारों को विकसित होने का मौका मिल जाता है और हम आत्मशान्ति के उपायों से वंचित रह जाते हैं। फलतः कार्य की गुणवत्ता एवं समयोचित पूर्णता प्रभावित होती है।
__हमें साधनों की पूर्ति के लिए समय उतना ही देना चाहिए, जितनी वास्तविक आवश्यकता है, अन्यथा निम्न विसंगतियाँ दिखाई देती हैं - ★ अर्थोपार्जन करने में ही व्यक्ति पूरी जिन्दगी बीता देता है। ★ ‘होम मैनेजमेंट' अर्थात् घर को व्यवस्थित रखने में महिलाएँ दिन-भर लगी रहती हैं। ★ विद्यार्थी सिर्फ शिक्षा प्राप्त करने के लिए 20-25 वर्ष बीता देता है। ★ मनोरंजन के नाम पर क्रिकेट मैच आदि देखने के लिए शौकीन व्यक्ति सुबह से शाम तक टी.
वी. के सामने बैठा रहता है, इत्यादि। 7) आध्यात्मिक साधक श्रीमद्राजचंद्र (1867-1900) ने अपनी बालवय में निम्नलिखित जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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