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समय-विभाजन किया था, जो उनकी आत्म-सजगता का परिचायक है - ★ 1 प्रहर - भक्तिकर्त्तव्य।
★1 प्रहर - विद्या प्रयोजन। ★1 प्रहर - धर्मकर्त्तव्य।
★2 प्रहर - निद्रा। ★1 प्रहर - आहार-प्रयोजन।
★2 प्रहर - संसार-प्रयोजन। 4.6.5 उचित व्यक्ति को उचित कार्य सौंपना (Right Delegation of Work)
अनेक बार नियत कार्य को नियत समय-सीमा में पूरा करने के लिए दूसरों का सहयोग अपेक्षित होता है। इस हेतु उचित व्यक्ति को कार्य सौंपना भी आवश्यक होता है।
जहाँ तक आध्यात्मिक साधना का प्रश्न है, इसका परम ध्येय है – पराधीनता से मुक्ति। यह तो निज शुद्धात्मस्वरूप का आश्रय करके एकमात्र स्वात्मा में रमण करने की साधना है। यही एकमात्र करने योग्य साधना है। जैनदर्शन में स्पष्ट कहा है - मैं एक हूँ, संसार में मेरा कोई नहीं है और मैं भी किसी का नहीं हूँ। वस्तुतः यही संसार का परम सत्य है, लेकिन आध्यात्मिक साधना की उचित पात्रता के अभाव में साधक को व्यावहारिक साधना के स्तर पर जीना पड़ता है। यदि वह व्यावहारिक साधना को भी नहीं अपनाता है, तो सम्भव है कि वह इतना पथभ्रष्ट हो जाए कि पुनः पथ पर आरूढ़ होना ही अशक्य हो जाए। मूल में व्यावहारिक साधना आध्यात्मिक साधना का साधन है। इसमें अर्थ, काम और धर्म सम्बन्धी व्यावहारिक प्रवृत्तियाँ होते हुए भी अध्यात्म का लक्ष्य बना रहता है।
जहाँ तक जीवन की व्यावहारिक साधना का प्रश्न है, इसमें आवश्यकतानुसार सहयोग देने एवं सहयोग लेने की जीवनशैली होनी चाहिए। तत्त्वार्थसूत्र में इसी दृष्टि से कहा गया है कि जीवन एक-दूसरे के सहयोग पर आधारित होता है – परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।82 ___ अक्सर, जिन कारणों से व्यक्ति दूसरों को कार्य सौंपने से हिचकिचाता है, उनमें से मुख्य हैं - ★ व्यक्ति ‘नाम' और 'यश' (Name and Fame) की प्राप्ति के प्रसंग में किसी को भी सहभागी
नहीं बनाना चाहता है। ★ वह चाहता है कि कार्य के परिणाम या उत्पादन का अधिकतम लाभ उसे ही मिले , अन्य को
नहीं। ★ वह दूसरे की क्षमताओं का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता है। ★ उसे अपना महत्त्व और अधिकार कम होने का डर सताता है। ★ उसे लगता है कि दूसरों का सहयोग लेने से वह कार्य-विहीन और निष्क्रिय हो जाएगा।
वस्तुतः, इस स्थिति में सकारात्मक दृष्टि की आवश्यकता है, जो हमें जैनदर्शन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्राप्त होती है। जैनदर्शन के अनुसार, हमें क्रोध, मान, माया और लोभ के भावों से ग्रस्त होकर उचित समय पर प्राप्त उचित वस्तु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। 83 वस्तु का अर्थ है - संसाधन, जो दो प्रकार के होते हैं - मानव और भौतिक। हमें आवश्यकतानुसार सही उद्देश्यपूर्वक
अध्याय 4 : समय-प्रबन्धन
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