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मूलाचार में यह भी कहा गया है कि मुनि बल, आयु, स्वाद, शारीरिक - पुष्टि और तेजस्विता के लिए आहार न करे, वरन् ज्ञान, संयम एवं ध्यान के लिए ही करे । '
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शरीर के सम्यक् प्रबन्धन के लिए उपर्युक्त निर्देश अतिमहत्त्वपूर्ण हैं, यद्यपि ये मुनियों को लक्षित करके दिए गए हैं, तथापि सभी जीवन - प्रबन्धकों के लिए यथाशक्ति (अंशतः या पूर्णतः) परिपालनीय हैं। गृहस्थ जीवन के धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षरूप साध्य होते हैं, इसीलिए गृहस्थ को चाहिए कि वह इस प्रकार अपनी उदरपूर्ति करे कि इन साध्यों में उचित सन्तुलन स्थापित हो सके।
(ख) आहार कैसा करना जैनाचार्यों की दृष्टि इस विषय में अतिव्यापक रही है। उन्होंने अनेक आयामों के मध्य समन्वय स्थापित किया है, जैसे
★ शारीरिक स्वास्थ्य की वृद्धि |
★ मानसिक स्वास्थ्य की वृद्धि ।
★ आध्यात्मिक विकास की पूर्ति ।
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आहार के प्रमुख प्रकार
प्राचीनकाल में आहार के मुख्य रूप से तीन प्रकार बताए गए हैं 116.
★ सात्विक आहार
★ राजसिक आहार
★ तामसिक आहार
जैनाचार्यों ने तामसिक आहार का पूर्ण निषेध किया है, राजसिक आहार को आवश्यकतानुसार सीमित मात्रा में ग्रहण करने का विधान किया है तथा सात्विक आहार को मुख्य आहार के रूप में मान्य किया है। इसी आधार पर आगे वर्णन किया जा रहा है
1) जैनाचार्यों द्वारा निषिद्ध तामसिक आहार
जैन- आहार-संहिता का यह सबसे प्राथमिक बिन्दु है। यदि व्यक्ति तामसिक आहार ग्रहण करता है, तो उसकी तामसिक वृत्तियाँ उभरने लगती हैं, वह पशुओं के समान व्यवहार करने लगता है। उसमें अज्ञान, प्रमाद, क्रूरता आदि अवगुणों की वृद्धि होने लगती है । तामसिक आहार के अन्तर्गत मांसाहार, मद्यपान आदि का समावेश होता
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★ अहिंसा का अधिकाधिक पालन । ★ ब्रह्मचर्य की अधिकाधिक निर्मलता । ★ पर्यावरणीय तत्त्वों का संरक्षण ।
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क) मांसाहार जैनाचार्यों ने मांस को सर्वथा त्याज्य बताया है। मांसाहार से क्षुब्धता एवं उन्माद बढ़ता है, जिससे व्यक्ति में शराब पीने एवं जुआ खेलने की वासनाएँ जागती हैं और वह सर्व दोषों से युक्त हो जाता है, इसीलिए जैनाचार्यों ने मांसाहार को सप्त व्यसनों में शामिल कर उसकी अपवित्रता को दर्शाया है। आचार्य वसुनन्दी ने तो मांस को विष्टा के समान गन्दा, छोटे-छोटे कीड़ों से युक्त और दुर्गंधवाला माना है। 120 महाभारत, मनुस्मृति, आयुर्वेद तथा आधुनिक शरीर - शास्त्रों में भी मांस की घोर भर्त्सना करके शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से इसे अनुपसेव्य बताया है।
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वैज्ञानिक आँकड़े भी यह बताते हैं कि मांसाहार की तुलना में शाकाहार अधिक पौष्टिक एवं अध्याय 5: शरीर-प्रबन्धन
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