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★ स्मृतिलोप
★ बुद्धि-भ्रष्टता
★ शक्तिह्रास
★ अन्तर्मानस में द्वेषोत्पत्ति
★ वाणी में कठोरता
पाचन-तन्त्र
आधुनिक शरीरशास्त्रियों ने भी मद्यपान के अनेकानेक दुष्परिणाम बताए हैं, 124 जैसे- कुपोषण, एनीमिया, शारीरिक - दुर्बलता, डायरिया, डिप्रेशन आदि । मद्यपान से विविध शारीरिक - तन्त्र भी प्रभावित होते हैं और इससे अनेक रोगों की सम्भावनाएँ बनती हैं
शारीरिक-तन्त्र
समयबद्धता की कमी
स्नायु तन्त्र
जनन-तन्त्र
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★ कुलहीनता ★ दुर्जनों की संगति
★ सज्जनों की असंगति
★ परिवार से तिरस्कार
रक्त-परिसंचरण-तन्त्र हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप आदि।
श्वसन - तन्त्र
★ धर्म का नाश ★ अर्थ का नाश
★ काम का नाश
सम्भावित रोग
अन्ननली में सूजन, जलन, कैंसर आदि लीवर में हिपेटाइटिस, सिरोसिस अल्कोहलिक फेटी लीवर, शर्करा की कमी आदि ।
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निमोनिया, क्षयरोग (टी.बी.), फेफडों में एब्सेस, मुँह तथा गले के कैंसर की सम्भावना आदि ।
इस प्रकार, शराब तथा मादकता उत्पन्न करने वाले सभी पदार्थों, जैसे बीयर, व्हिस्की, रम, चरस, भांग, अफीम, हेरोइन, ब्राउनशुगर इत्यादि का त्याग करना अत्यावश्यक है ।
| स्मृतिलोप, सायकोसिस, हेलुसीनेशन (विभ्रम), मिर्गी आदि। टेस्टोस्टीरोन हार्मोन की कमी, प्रजनन क्षमता का ह्रास आदि ।
ग) शहद (मधु ) जैनाचार्यों की दृष्टि में शहद एक अशुचि पदार्थ है, जिसमें अनेक प्रकार के रसज जीवों की उत्पत्ति होती है, अतः शहद भी त्यागने योग्य पदार्थ है । यह मधुमक्खियों की लार एवं वमन से तैयार होता है, इसमें लाखों जन्तुओं अर्थात् अशक्त मधुमक्खियों एवं उनके अण्डों को नष्ट किया जाता है। अतः बुद्धिमान् पुरूषों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए ।'
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घ) मक्खन जैनाचार्यों की दृष्टि में, मक्खन वह पदार्थ है, जिसमें छाछ का सम्पर्क छूटने के तत्काल बाद अत्यधिक सूक्ष्म और अदृश्य त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। शरीर - शास्त्रियों के अनुसार, कोलेस्ट्रॉल के सर्वाधिक प्रमुख स्रोतों में से मक्खन भी एक है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि घी में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा मक्खन से कम होती I वस्तुतः मक्खन में सेचुरेटेड फेटी ऐसिड की मात्रा अत्यधिक होती है और इसीलिए मक्खन हृदय रोग का कारण बन सकता है। 127 इसके अतिरिक्त यह एक विकारवर्धक पदार्थ भी है, अतः सर्वथा त्याज्य है ।
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जैन-परम्परा में मांस, मदिरा, मधु और मक्खन इन चारों को महाविगई (महाविकृति) कहा
अध्याय 5: शरीर-प्रबन्धन
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