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5.3.2 जल सम्बन्धी विसंगतियाँ
जल है तो जीवन है। मानव-शरीर का दो-तिहाई भाग जल ही है। यह जल शरीर की विविध यान्त्रिक एवं जैव-रासायनिक (Biochemical) क्रियाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह स्वयं भी एक पोषक तत्त्व है और शरीरोपयोगी अन्य पोषक-तत्त्वों का संवाहक भी है। मानव-शरीर में विद्यमान रक्त का 55% अंश जल ही है, जो रक्त परिसंचरण के द्वारा पोषक-तत्त्वों को प्रत्येक कोशिका (Cell) तक पहुँचाता है। यही जल शरीर में उत्पन्न त्याज्य पदार्थों के उत्सर्जन में भी अहम भूमिका निभाता है।
विडम्बना यह है कि मानव भविष्य की कपोल कल्पनाओं में इतना अस्त-व्यस्त है कि जल की शुद्धि का भी विवेक नहीं रख पाता। बहुत कम लोग हैं, जो शुद्ध जल का ही सेवन करते हैं। अधिकांश लोग तो जब, जहाँ, जैसा पानी मिलता है, उसे पी लेते हैं और अपनी तृषा शान्त कर लेते हैं, किन्तु घर का शुद्ध जल साथ में ले जाना पसन्द नहीं करते। पान खाने या चाय पीने के पूर्व वे अक्सर होटल-रेस्त्रां आदि की गंदी ग्लासों के अनछने पानी को पीते हुए देखे जाते हैं। कई बार तो घर में भी बाजार का बर्फ लाकर ठण्डाई आदि बनाते हैं। सार्वजनिक स्थानों, जैसे – बस-स्थानक, रेलवे स्टेशन, अस्पताल, विद्यालय आदि की टंकियों में कई दिनों से भरा हुआ पानी सैकड़ों-हजारों लोग रोज पीते हैं। यहाँ तक कि धर्मशालाओं एवं मांगलिक भवनों के तथाकथित शुद्ध पानी का उपयोग भी बेझिझक करते हैं।
प्रदूषित जल पीने से मानव के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विकासशील देशों में पचहत्तर प्रतिशत मृत्युओं का मूल कारण जल प्रदूषण ही होता है। पेट के रोगों में से अस्सी प्रतिशत रोग भी प्रदूषित जल से ही होते हैं। वस्तुतः, प्रदूषित जल पीने से अनेक प्रकार के जलवाहित रोग (Waterborne Diseases) होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
जल के द्वारा फैलने वाले सूक्ष्म जीवाणु एवं उनसे जनित रोग क्र. जीवाणु एवं
उनसे फैलने वाले सम्भावित रोग परजीवी 1) वायरस वाइरल बुखार, हिपेटाइटिस (पीलिया), पोलियो आदि 2) बैक्टीरिया हैजा, टाईफाइड, पैराटाईफाइड, पेचिस (डिसेन्ट्री) गैस्ट्रोएंट्राइटिस, डायरिया । 3) प्रोटोजोआ अमीबियोसिस, अतिसार, जिआरडियासिस, थ्रोम्बोइसिस 4) हेल्मिन्थिक राउंडवर्म, हुकवर्म, भेडवर्म आदि कृमियों से सम्बन्धित रोग, जैसे - नारु, रक्त की - (कृमि) कमी (Anemia), भूख न लगना, पेट-दर्द, चर्मरोग आदि 5) स्नेल सिस्टोसामियासिस
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अध्याय 5 : शरीर-प्रबन्धन
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