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भारतीय संस्कृति में निद्रा के सन्दर्भ में अनेक उपयोगी निर्देश दिए गए हैं। जैनाचार्यों के अनुसार, व्यक्ति को रात्रि के प्रथम प्रहर के पश्चात् ही सोना चाहिए और अन्तिम प्रहर से पूर्व जाग जाना चाहिए तथा दिन में तो सोना ही नहीं चाहिए। 84 महाभारत, आयुर्वेद आदि ग्रन्थों में भी यही उपदेश निर्दिष्ट है। 85 इस सम्बन्धी उपयोगी चर्चा आगे की जाएगी।
5.3.6 स्वच्छता सम्बन्धी विसंगतियाँ
स्वच्छता जीवन का एक आवश्यक कर्त्तव्य है, क्योंकि स्वच्छता ही स्वस्थता का आधार है । यह स्वच्छता तीन प्रकार की है आत्मिक, शारीरिक एवं पर्यावरणीय । जैनदर्शन में सापेक्ष - दृष्टि से इन तीनों का महत्त्व बताया गया है। यहाँ प्रसंगतः शारीरिक एवं पर्यावरणीय स्वच्छता की मुख्यता से कथन किया जा रहा I
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यद्यपि शरीर एवं आसपास के वातावरण की स्वच्छता का जीवन में अनिवार्य महत्त्व है, तथापि आज व्यक्ति इस ओर उचित ध्यान नहीं दे रहा है। व्यक्ति की स्वच्छता का मापदण्ड संकीर्ण हो गया
। कुछ लोग अपने घर को ही स्वच्छ रखना पसन्द करते हैं और घर के बाहर अपशिष्ट पदार्थों को फेंकते रहते हैं। यही कचरा सड़कर अनेक कीटाणुओं को जन्म देता है। इससे आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता और मलेरिया, टाईफाइड, पीलिया, हैजा, दस्त आदि अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैल जाती हैं ।
कई लोग तो प्रमाद एवं आलस्य के कारण घर एवं शरीर की स्वच्छता का भी ध्यान नहीं रख पाते। दीवारों पर लगे मकड़ी आदि के जाले, रात्रि के जूठे बर्तन, बढ़े हुए नाखून, बिना हाथ धोए खाने की आदत, सूतक धर्म की उपेक्षा, मासिक धर्म के नियमों का उल्लंघन, बासी एवं फ्रीज के भोजन की आदत आदि उपर्युक्त बातों की पुष्टि करते हैं । इनसे भी स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है।
जैनदर्शन में इसीलिए प्रत्येक कार्य करते हुए आत्मिक - शुद्धता के साथ-साथ शारीरिक एवं पर्यावरणीय शुद्धता का उपदेश भी दिया गया है। यहाँ निर्दिष्ट बाह्य शुद्धियाँ, जैसे शरीर-शुद्धि, वस्त्र-शुद्धि, भूमि - शुद्धि, द्रव्य-शुद्धि आदि शरीर - प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसकी भी विस्तृत चर्चा आगे की जाएगी।
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5.3.7 श्रृंगार (साज-सज्जा ) सम्बन्धी विसंगतियाँ
व्यक्ति हर उम्र में अपने सौन्दर्य का प्रदर्शन करना चाहता है । आज इस क्षेत्र में उसने कई नई-नई खोजें कर ली हैं। कई लोग बालों में अलग-अलग प्रकार के रासायनिक रंगों (Dyes) का उपयोग करते हैं, स्नान के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक अथवा जैविक शैम्पू, साबुन आदि प्रसाधनों का प्रयोग करते हैं। शरीर पर अनेक प्रकार के उबटन, साबुन आदि लगाते हैं। अनेक प्रकार के तेल, पावडर, क्रीम, परफ्यूम आदि का उपयोग करते हैं, जिनसे रोमछिद्र बन्द हो जाते हैं। शरीर पर तड़कीले, भड़कीले, सिन्थेटिक और चुस्त कपड़े आदि पहनते हैं । विशेषतः महिलाएँ लिपस्टिक, अध्याय 5: शरीर-प्रबन्धन
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