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नेलपॉलिश, आइब्रो, ब्लीच, क्रीम आदि का प्रयोग बारम्बार करती हैं। कई महिलाएँ तो नाखून बढ़ाने को फैशन भी मानती हैं, पर कभी-कभी बढ़े नाखूनों के अनायास टूट जाने से उन्हें दीर्घकालीन पीड़ा भी सताती रहती है। कई लोग चेहरे को सुन्दर बनाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी जैसे अनावश्यक एवं महँगे उपचार भी करवाते हैं। इस प्रकार, पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण तेजी से बढ़ रहा है।
इन सबका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति को अनावश्यक फोड़े-फुसी हो जाते हैं, रोमछिद्र ढंक जाने से शरीर का मैल उत्सर्जित नहीं हो पाता, त्वचा की एलर्जी हो जाती है, कभी-कभी तो त्वचा के कैंसर होने की सम्भावना भी बन जाती है। नाखून एवं होंठों के माध्यम से अवांछनीय तत्त्व शरीर के भीतर पहुँचकर नुकसान करते रहते हैं।
जैनाचार्यों ने सामान्यतया शृंगार का निषेध ही किया है, फिर भी यदि आवश्यकता महसूस हो, तो मर्यादित एवं अहिंसक साधनों का प्रयोग करने की छूट दी है। आचारांग में वृद्धजनों के लिए तो स्पष्ट संकेत है कि वे क्रीड़ा, हास्य, रति एवं शरीर की शोभा-विभूषा आदि बिल्कुल न करें।
__शरीर-प्रबन्धन के लिए यह जानना आवश्यक होगा कि शृंगार-सम्बन्धी सम्यक् व्यवहार कैसा हो? इसका स्पष्टीकरण आगे किया जाएगा। 5.3.8 ब्रह्मचर्य सम्बन्धी विसंगतियाँ
वर्तमान में प्रचलित भौतिकवादी संस्कृति से अब्रह्मचर्य को भी बढ़ावा मिल रहा है। इसमें संचार–साधनों, जैसे - टी.वी., सिनेमा, मोबाईल, पोर्न, इन्टरनेट एवं अश्लील पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका है। स्त्री-पुरूष को एक साथ घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता मिलना आज की सामाजिक संस्कृति बन गई है। पाश्चात्य संस्कृति को पसन्द कर 'वेलेण्टाइन डे' और 'लिव इन रिलेशनशीप' जैसी परम्पराओं की नकल निःसंकोच हो रही है, जो सुप्त कामनाओं को उद्दीप्त करती हैं। विवाह की भूमिका 'वेलेण्टाइन डे' से शुरु हो जाती है और ‘कोर्ट मैरिज' पर समाप्त हो जाती है। जिस उम्र में ब्रह्मचर्य आश्रम की साधना की जानी चाहिए, उस उम्र में रासलीला होने लगी है। 'नाईट क्लब' के नाम पर कई युवतियाँ देह व्यापार में लिप्त होती हैं, जिसमें आकर्षित होकर कई संस्कारी व्यक्ति भी पतित हो जाते हैं।
___ व्यक्ति अनेक प्रकार से काम-क्रीड़ा करता है, कभी अंगक्रीड़ा, तो कभी अनंगक्रीड़ा। गुदा मैथुन, मुख मैथुन, हस्त मैथुन आदि अतिविकृत परम्पराएँ भी चल रही हैं। व्यक्ति की इन उद्दीप्त वासनाओं की जब पूर्ति नहीं होती, तब वह निराशा, हताशा एवं कुण्ठा से ग्रस्त हो जाता है। हृदय की कोमल-वृत्ति समाप्त हो जाती है और आत्महत्या, बलात्कार, परहत्या आदि अपराधों का जन्म होता
अब्रह्मचर्य सेवन के अनेक शारीरिक दुष्परिणाम भी हैं, इससे वीर्य-शक्ति का अत्यधिक नुकसान होता है, एड्स जैसी भयंकर बीमारी भी उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है, जिसका मृत्यु के अलावा
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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