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(1) आहार क्यों? - आज व्यक्ति को यह नहीं पता कि आहार का सही प्रयोजन क्या है। कई लोग जीवन के लिए नहीं, अपितु जीभ के लिए आहार करते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में स्वास्थ्य से अधिक महत्त्व स्वाद का है। कई महिलाएँ शरीर को सुन्दर बनाने के लिए, तो कई पुरूष शरीर को सुडौल बनाने के लिए आहार करते हैं, क्योंकि वे शरीर को प्रदर्शन का माध्यम ही मानते हैं। सौन्दर्य एवं सौष्ठव प्रतिस्पर्धाओं के प्रति बढ़ती हुई लोकप्रियता भी इस बात की पुष्टि करती है। यह दिग्मूढ़ता शरीर के सम्यक् प्रबन्धन के लिए सबसे बड़ी बाधा है, इसीलिए निशीथ-भाष्य में आहार के सही प्रयोजन के बारे में संकेत देते हुए कहा गया है – मोक्ष के साधन ज्ञान आदि हैं, ज्ञान आदि की प्राप्ति का साधन शरीर है तथा शरीर के संरक्षण का साधन आहार है। इस बात की पुष्टि काका कालेलकर ने भी की है कि जब आहार शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास को छोड़कर
वल इन्द्रिय-तप्ति और विलास का साधन बन जाता है, तब वह खाने वाले को ही खा जाता है।67 (2) आहार कैसा हो? – आज व्यक्ति को नहीं पता कि उसके शरीर को किन-किन तत्त्वों की आवश्यकता है और वह उन्हें किन-किन स्रोतों से प्राप्त कर सकता है। अतः व्यक्ति स्वादेन्द्रिय के वशीभूत होकर असेवनीय पदार्थों का बेहिचक भक्षण कर रहा है। आहार में अभक्ष्य, अपौष्टिक , असन्तुलित, अपाच्य , असात्विक , अशुद्ध एवं अहितकर सामग्रियों की मात्रा बढ़ती जा रही है। कई लोग फास्ट फुड, टीण्ड फुड, प्रोसेस्ड फुड, जंक फुड आदि का अत्यधिक सेवन करते हैं। कई लोग बाजार के तैयार आटे, बेसन, थूली (दलिया), मैदा आदि अशुद्ध पदार्थों का नियमित उपयोग करते हैं। कई लोग शरीर के लिए घातक पदार्थ, जैसे - शराब, मांस, तम्बाकू, गुटखा, सिगरेट वगैरह के आदी (Addict) हो जाते हैं।
पेट को कचरापेटी के समान भरने वाले ये लोग अनेक रोगों के शिकार हो जाते हैं। जैनाचार्यों ने इसीलिए शरीर के प्रबन्धन को बिगाड़ने वाले कुभोजन अर्थात् अभक्ष्य, अपेय और अपथ्य भोजन का निषेध किया है, इसीलिए सम्यक् शरीर–प्रबन्धन हेतु इनका त्याग करना चाहिए। (3) आहार कब? – उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार, जीवन का प्रत्येक कार्य उचित समय पर करना चाहिए। किन्तु, आज की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में व्यक्ति के आहार का समय बिगड़ गया है। अधिकांश घरों में रसोई का कार्य सुबह से शुरु होकर देर रात तक चलता ही रहता है। हर सदस्य के भोजन का समय अलग-अलग होता है। किसी को सुबह उठते ही बेड-टी चाहिए, तो किसी को सोने के पूर्व भोजन चाहिए। कई लोग दिन और रात तम्बाकू, गुटखा आदि ही चबाते रहते हैं। कई लोगों को खाली मुँह रहना ही नहीं सुहाता, उन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में खाने-पीने के लिए अवश्य चाहिए।
इस पशुतुल्य चर्या का परिणाम शारीरिक रोग के रूप में उभरता है, इसीलिए जैनाचार्यों ने जब-तब भोजन करने के बजाय समयानुकूल भोजन करने का निर्देश दिया है, जो शरीर-प्रबन्धन की अपेक्षा से अत्युपयोगी है।
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अध्याय 5: शरीर-प्रबन्धन
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