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4.7 निष्कर्ष
___ व्यक्ति की प्रगति में समय-प्रबन्धन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि कार्य की निष्पत्ति और सफलता की प्राप्ति समय सापेक्ष ही होती है। वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति सफलता तो चाहता है, किन्तु समय का सम्यक् नियोजन न कर पाने से उसका जीवन निरर्थक हो जाता है, अतः वर्तमान युग की ज्वलन्त आवश्यकता है - समय-प्रबन्धन।
जैनदर्शन में 'समय' शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया गया है, जैसे - आत्मा, विश्व, काल, काल की सूक्ष्मतम इकाई, दार्शनिक मत एवं व्यवहार-काल (दैनंदिन जीवन में सेकण्ड, मिनिट, घण्टा, दिन, सप्ताह आदि के रूप में प्रयुक्त समय)। प्रस्तुत अध्याय में 'व्यवहार-काल' के रूप में 'समय' शब्द का प्रयोग किया गया है।
_ 'समय' को देखा तो नहीं जा सकता, किन्तु इसका अनुभव सभी करते हैं। यह पूर्व-जीवन में बाँधे हुए (संचित) आयुकर्म के अनुसार नियत अवधि के लिए सभी को मिलता है। इसके अविरल प्रवाह को लेशमात्र भी कम-ज्यादा नहीं किया जा सकता। यहाँ तक की जीवन का जो समय बीत जाता है, उसे पुनः लौटाया भी नहीं जा सकता। समय तो सभी को मिलता है, किन्तु कोई इसका प्रयोग सकारात्मक कार्यों में करता है, तो कोई नकारात्मक कार्यों में। वस्तुतः, समय-प्रबन्धन का लक्ष्य यही है कि व्यक्ति समय की इन विशेषताओं को ध्यान में रखकर समयानुकूल जीने का प्रयत्न करे।
समय की महत्ता भूतकाल में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी। भगवान् महावीर ने इसीलिए समयमात्र का भी प्रमाद नहीं करने का निर्देश दिया है। उन्होंने स्वयं साढ़े बारह वर्ष तक आत्म-साधना कर आत्म-विकास की चरम अवस्था की प्राप्ति की। उनके अनुयायी अनेक महापुरूषों ने भी समय के महत्त्व को समझकर जीवन का सदुपयोग किया।
वर्तमान युग में भी एक आम आदमी न्यूनतम समय में अधिकतम कार्य पूर्ण करने में विश्वास रखता है और इसीलिए मानव ने विज्ञान और तकनीकी विकास द्वारा त्वरित गति से कार्य करने वाले अनेक उपकरणों का आविष्कार किया है, जो एक पल के अतिसूक्ष्म अंश में कार्य करने में भी सक्षम
यद्यपि मानव समय से भी अधिक तेज गति से दौड़ना चाहता है, फिर भी सम्यक् समय-प्रबन्धन की कला न जान पाने से वह चंचलता, अधीरता और जल्दबाजी को ही समय-प्रबन्धन का आवश्यक अंग मान बैठा है।
अधिकांश लोगों के जीवन में समय के सम्यक् नियोजन का अभाव है। इससे एक ओर उनका कार्यभार बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। समयोचित कार्य न कर पाने से उनके जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण पक्षों की उपेक्षा हो रही है, जिसके कारण उन्हें पछताना भी पड़ रहा है। अतः भगवान् महावीर का यह निर्देश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि जो कार्य जिस
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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