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अर्थ, काम और मोक्ष के पुरूषार्थ में समय का सही विभाजन करना चाहिए। समय-सारणी बनाने हेतु आवश्यक निर्देश 1) समय-सारणी बनाते हुए निर्धारित मुख्य लक्ष्य को ध्यान में रखना आवश्यक है। यदि हम अपने
लक्ष्य को ही भूल जाएँगे, तो इच्छित परिणाम की प्राप्ति की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी। 2) सूर्योदय से पूर्व उठने की आदत डालें और यहीं से समय-प्रबन्धन की प्रक्रिया शुरु करें।
भारतीय धर्मशास्त्र एकमत से कहते हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में उठने से जीवन में नई स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है और आलस्य से छुटकारा मिलता है।" आज वैज्ञानिकों ने भी इसे प्रमाणित कर दिया है। जो प्रातःकाल चार बजे के आसपास जाग जाते हैं, उनके शरीर में 'सेराटोनिन' नामक रसायन का विशेष स्राव होता है, जो मानसिक प्रसन्नता एवं शान्ति का निमित्त है। जो देर तक सोते हैं, उन्हें 'सेराटोनिन' का उचित स्राव न होने से बेचैनी,
चिड़चिड़ाहट, आलस्य, उदासीनतादि महसूस होते हैं। 3) 'समय-सारणी' में दो कार्यों के बीच कुछ मिनटों का अवकाश होना चाहिए, जिससे कार्य शुरु
करने में बाधा नहीं आती है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि 'भिक्षा के लिए गया हुआ साधु आहार लाने के बाद स्वाध्याय प्रारम्भ करे, तत्पश्चात् क्षण भर का विश्राम ले। विश्राम करते हुए गृहीत आहार का दूसरे मुनियों के लिए संविभाग करने का शुभ चिन्तन करे। यदि कोई व्यक्ति दो कार्यों के बीच विश्राम या अवकाश ले और उस समय कोई शुभ चिन्तन करे, तो शारीरिक एवं मानसिक रूप से तनावमुक्त (Stress Free) होता है, साथ ही कार्य करने की ऊर्जा में वृद्धि होती है, जिससे अगले कार्य की अच्छी शुरुआत हो सकती है। ‘समय-सारणी' में सन्ध्याकालीन भोजन अल्प और सूर्यास्त के पूर्व होना चाहिए। जैनआचारशास्त्रों में रात्रिभोजन के निषेध का विधान है। रात्रिभोजन-निषेध के अनेक वैज्ञानिक कारण हैं, उनमें से ‘समय की अनावश्यक बर्बादी' भी एक मुख्य कारण है। जो लोग रात्रि में व्यवसायादि से निवृत्त होकर भोजन करते हैं, उन्हें अक्सर टहलने के लिए जाना पड़ता है अथवा आहार को पचाने के लिए टी.वी. आदि मनोरंजन एवं गपशप का सहारा लेना पड़ता है, परन्तु जो व्यक्ति सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर लेता है, उसकी पाचन प्रक्रिया निद्रा के समय के पूर्व स्वयमेव समाप्त हो जाती है। किसी ने आहार और शयन की प्रक्रिया को सुधारने के लिए सलाह दी है - ‘पाँच बजे उठना एवं दस बजे खाना, फिर पाँच बजे खाना एवं दस बजे सोना'। इससे न केवल पुरूषों का, बल्कि गृहिणियों का समय भी बचेगा, जिसका उपयोग रात्रि
में सत्संग, भक्ति आदि में किया जा सकता है। 5) “समय-सारणी' को बनाने के लिए हम जीवन से सम्बन्धित विविध पक्षों को इस प्रकार
विभाजित कर सकते हैं -
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अध्याय 4: समय-प्रबन्धन
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