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याकिनी महत्तरा द्वारा उच्चरित एक गाथा का अर्थ न समझ पाने से उनके अंहकार को ठेस पहुंची और अपनी असन्तुलित शिक्षा का भान हुआ, जिसे समग्र बनाने हेतु उन्होंने श्रीजिनभद्रसूरि के पास भागवती दीक्षा अंगीकार की और क्रमशः अपनी शिक्षा का सर्वांगीण विकास किया।55 (5) चालाकी (Cunningness) – एक मान्यता यह भी है कि जो कम पढ़े-लिखे होते हैं, वे भोले-भाले और सीधे-सादे होते हैं। अतः चतुराई और शठता सीखने के लिए भी व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करता है। वह इस बात की उपेक्षा कर देता है कि चालाकी, कुटिलता, ठगी, विश्वासघात आदि का व्यवहार उसके व्यक्तित्व के पतन का कारण है। शिक्षा के माध्यम से चालाकी सीखकर वह दूसरों का अहित करने एवं स्वयं के भौतिक हित को ही साधने में लगा रहता है।
परिणाम यह है कि मानव का मानव पर से विश्वास डगमगाने लगा है। आज भाई-भाई, पिता-पुत्र, माँ-बेटी, पति-पत्नी, गुरू-शिष्य आदि के पवित्र सम्बन्धों में भी दरारें आ गई हैं। जैनआचारशास्त्र कहते हैं कि वह अनैतिक तरीकों से भले ही सुख-सुविधा प्राप्त कर लेगा, लेकिन जीवन में शान्ति और सम्मान से वंचित रह जाएगा। वह अन्यों की सद्भावना, स्नेह और वात्सल्य के लिए हमेशा तरसता रहेगा। (6) विवाह सम्बन्धों में आसानी - एक जनप्रचलित विचारधारा है कि शिक्षित व्यक्ति का विवाह-सम्बन्ध आसानी से हो जाता है, जबकि अशिक्षित व्यक्ति का नहीं। इस धारणा से भी व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करता है।
इसका परिणाम है कि ऐसे विद्यार्थी सिर्फ डिग्री प्राप्ति के लिए लालायित रहते हैं। इन्हें जीवन में शिक्षा की उपयोगिता समझ में नहीं आती। आज भी कई लड़कियाँ ऐसी हैं, जिनके जीवन में डिग्री का महत्त्व विवाह होने तक ही दिखाई देता है। विवाह के पश्चात् उनके जीवन में प्राप्त शिक्षा का कोई उपयोग दिखाई नहीं देता।
इस सन्दर्भ में जैनकथासाहित्य में इलायचीकुमार की कथा प्रसिद्ध है, जिन्होंने नटकन्या को पाने के लिए अपने जीवन को नटविद्या सीखने में लगा दिया और साथ ही कुल के गौरव को भी धूल-धुसरित कर दिया। इस अप्रबन्धित जीवनशैली का एहसास उन्हें एक निर्ग्रन्थ मुनि (जीवन-प्रबन्धक) को देखकर हुआ। तत्काल उन्होंने आत्मसाधना की ओर कदम बढ़ाया और क्षण में ही वे पूर्णत्व को प्राप्त हो गए। (7) लोकाचार का अन्धानुकरण - आज शिक्षा-प्राप्ति एक फैशन बन चुका है। व्यक्ति को यह नहीं पता होता है कि मुझे क्यों पढ़ना है? अथवा क्या पढ़ना है? इत्यादि। वह तो इसलिए पढ़ता है, क्योंकि सब पढ़ रहे हैं।
सामान्यतया ऐसे विद्यार्थी डिग्री प्राप्त कर सन्तुष्ट तो हो जाते हैं, पर शिक्षा का जीवन में सम्यक् प्रयोग नहीं कर पाते। यथोचित रुचि के अभाव में उनमें शिक्षा के प्रति आवश्यक गम्भीरता एवं 137 अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन
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