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रूप में आकाश-प्रदेश पर अवस्थित है। 10
★ सिद्धान्त अर्थात् दार्शनिक मत ।
★ व्यवहार-काल, जिसका प्रयोग दिन, सप्ताह, माह, ऋतु, वर्ष के रूप में रोजमर्रा के जीवन में किया जाता है।"
प्रस्तुत अध्याय में इस अन्तिम अर्थ में ही 'समय' शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। इसका लोक-व्यवहार में अत्यधिक महत्त्व है, जैसे मेरा मन्दिर जाने का समय 6 बजे है, आप कितने समय से राकेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वह किस समय घर पहुँचेगा, मेरा तो दो वर्ष का समय बेकार चला गया इत्यादि ।
4.1.3 जैनदर्शन में समय की मौलिक विशेषताएँ
जीवन में हर व्यक्ति को अनगिनत चीजें उपलब्ध होती हैं, जैसे मिट्टी, हवा, प्रकाश, पानी, वनस्पति आदि। इसी प्रकार उसे 'समय' भी उपलब्ध है, जो सबसे विशिष्ट तत्त्व है। इसकी विलक्षणता के कई कारण हैं।
★ सामान्यतया प्रकृति की समस्त वस्तुओं को प्रत्यक्ष अथवा परोक्षरूप से देखा जा सकता है, लेकिन 'समय' एक ऐसा विशेष तत्त्व है, जिसे देखा नहीं जा सकता। हाँ, हम चाहें तो दिन, सप्ताह, महीना, ऋतु, अयन, वर्ष, युग, शताब्दी आदि के रूप में इसका अनुभव कर सकते हैं। 12 जैनाचार्यों ने इसकी परिगणना इस प्रकार की है 13
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आवलिका
क्षुल्लक भव
श्वासोच्छ्वास
लव
अहोरात्र
मास
—
अयन
युग
शताब्दी
सूक्ष्मतम माप्यकाल असंख्य समय
256 आवलिका
171⁄2 क्षुल्लक भव
7] स्तोक
30 मुहूर्त
-
2 पक्ष (कृष्ण व शुक्ल)
3 ऋतु
5 वर्ष
अध्याय 4: समय-प्रबन्धन
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