________________
( 3 ) समय -- प्रबन्धन क्या है?
(क) उचित समय पर उचित कार्य करना (Right work at the Right time)
भगवान् महावीर ने श्रमण - श्रमणियों को माध्यम बनाकर एक सार्वभौमिक सिद्धान्त दिया कि उचित समय पर उचित कार्य करना चाहिए, इसे ही समय- प्रबन्धन कहते हैं ।
जीवन में समय एवं कार्य दो समानान्तर रेखाओं के समान हैं, जिनमें समन्वय होना अत्यावश्यक है। इनकी उचितता एवं अनुचितता के सन्दर्भ में चार विकल्प होते हैं, जो निम्नानुसार हैं
समय उचित समय
अनुचित कार्य उचित कार्य
इनमें से प्रथम तीन विकल्प अनुचित हैं तथा अन्तिम विकल्प उचित एवं आचरणीय है, जो निम्न उदाहरणों (पौराणिक एवं व्यावहारिक) में सरलतया परिलक्षित हो रहा है
★ अनुचित समय पर अनुचित कार्य करना जैसे
1) रथनेमि
10
x
किन यह कार्य उचित था और न ही समय ।
2) कोई वृद्ध व्यक्ति पत्नी की मृत्यु के पश्चात् पुनर्विवाह करता है ।
श्रमणावस्था में रथनेमि ने साध्वी राजीमती से विषयभोगों की प्रार्थना की, कहना होगा
★ उचित कार्य, लेकिन अनुचित समय पर करना 1) बाहुबली – ये आदिनाथ प्रभु के दर्शन के लिए प्रातः महोत्सवपूर्वक जाने का विचार कर सन्ध्या में दर्शन करने नहीं गए, किन्तु जब अगले दिन सुबह पहुँचे, तो प्रभु को वहाँ नहीं पाया, जोर-जोर से 'बाबा आदम - बाबा आदम' की पुकार लगाई, परन्तु तब तक प्रभु अन्यत्र विहार कर चुके थे । 11
2 ) समय के सम्यक् नियोजन के अभाव
लिया। वस्तुतः, यही
Jain Education International
-
★ उचित समय पर उचित कार्य करना जैसे
1) श्रीइंद्रभूति गौतम
—
राहुल ट्रेन छूटने के 5 मि. बाद रेल्वे स्टेशन पहुँचता है।
★ उचित समय पर अनुचित कार्य करना जैसे 1) गोशालक इन्हें संसार - समुद्र से पार करने वाले प्रभु महावीर का सान्निध्य मिला, परन्तु
अहंकारवश इन्होंने उनसे ही दूरी बना ली। 12
2) कोई व्यक्ति आत्मकल्याणार्थ उपदेश श्रवण करने के लिए नियत समय पर तो पहुँच गया,
लेकिन प्रमादवश निद्रा लेने लगा ।
—
-
जैसे -
-
-
-
For Personal & Private Use Only
इन्होंने प्रभु महावीर का उपदेश सुनते ही उसी क्षण संयम अंगीकार कर समय-प्रबन्धन का श्रेष्ठ रूप है। 43 जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
192
www.jainelibrary.org