________________
4.2 समय की सार्वकालिक महत्ता
लोक-व
समय की महिमा को सदा ही स्वीकारा गया है। जहाँ एक ओर समय का उल्लेख किए बिना क - व्यवहार सम्भव नहीं हो सकता, वहीं दूसरी ओर समय का सम्यक् मूल्यांकन किए बिना जीवन - लक्ष्यों की समयोचित प्राप्ति भी सम्भव नहीं है। भगवान् महावीर ने कहा है 'हे आत्मविद् साधक! जो बीत गया सो बीत गया, शेष रहे जीवन को ही लक्ष्य में रखते हुए प्राप्त अवसर को परख अर्थात् समय का मूल्य समझ । " उत्तराध्ययनसूत्र में गौतमस्वामी को सम्बोधित करते हुए और उपलक्षण से जीवमात्र को जाग्रत होने का सन्देश देते हुए बारम्बार उपदेश दिया गया है और कहा गया है. 'जैसे हिलती हुई कुश - घास की नोंक पर ओस की बूँद बहुत थोड़े समय के लिए टिक पाती है, वैसे ही मानव का जीवन भी क्षणभंगुर है, अतः हे गौतम! क्षणभर के लिए भी प्रमाद न कर। 27
,26
अतीतकाल में कई महापुरूष हुए, जिन्हें जीवन में विकट परिस्थितियाँ प्राप्त हुई और जीवन भी अल्प मिला, लेकिन उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अविस्मरणीय बन गया। भगवान् महावीर, श्रीगौतमस्वामी, श्रीसुधर्मास्वामी, श्रीजम्बूस्वामी, श्रीस्थूलिभद्र, श्रीकुन्दकुन्दाचार्य, श्रीउमास्वाति, श्रीसिद्धसेनदिवाकर, श्रीहरिभद्रसूरि, श्री अभयदेवसूरि श्रीजिनदत्तसूरि, मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरि, श्रीजिनकुशलसूरि, अकबरप्रतिबोधक श्रीजिनचंद्रसूरि, श्रीआनन्दघनजी, श्रीयशोविजयजी, श्रीदेवचंद्रजी, श्रीराजचंद्रजी आदि महापुरूषों ने समय के एक-एक क्षण का महत्त्व स्वीकार कर जीवन को सम्यक् लक्ष्य की ओर गतिशील किया था और समय-प्रबन्धन के माध्यम से ही उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त किया था ।
6
Jain Education International
जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
For Personal & Private Use Only
188
www.jainelibrary.org