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1) शब्दार्थ कथन में प्रयुक्त शब्दों के आधार पर सामान्य अर्थ करना। 2) नयार्थ अलग-अलग दृष्टिकोणों के आधार पर एक ही कथन के भिन्न-भिन्न अर्थ करना, फिर प्रसंगानुसार
सही अर्थ का चयन करना। 3) मतार्थ कथन के सन्दर्भ में विभिन्न-मत वालों की विचारधारा को समझकर सही अभिप्राय ग्रहण करना। 4) आगमार्थ सत्शास्त्रों (आगमों और अनुयोगों) के आधार पर कथन का अर्थ करना। 5) भावार्थ वाक्य के अभिप्राय अर्थात् सारभूत भावों को समझना।
उपर्युक्त पद्धति का प्रयोग जीवन की सभी शिक्षाओं (लौकिक एवं आध्यात्मिक) की प्राप्ति करते समय किया जाना चाहिए। इनका प्रयोग करके शिक्षार्थी शिक्षक के गूढ़ अभिप्राय की सम्यक् भावानुभूति कर सकता है। इससे मानसिक, भावात्मक एवं आध्यात्मिक आयामों में रही कमजोरियाँ दूर हो सकती
3.7.6 शिक्षा : जीवनभर चलने वाली सतत प्रक्रिया
सामान्यतया यह माना जाता है कि शिक्षा का सम्बन्ध जीवन के प्रारम्भिक काल में (किशोरावस्थापर्यन्त) अपनाई जाने वाली सीखने की प्रक्रियाओं से है, जो लगभग तीन वर्ष की उम्र से प्रारम्भ होकर लगभग पच्चीस वर्ष की उम्र तक चलती है। शिक्षा-प्रबन्धन के लिए यह मान्यता सही नहीं है। वस्तुतः, शिक्षा के लिए उम्र का कोई बन्धन नहीं होता, यह गर्भ-काल से प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। जैनाचार्यों के अनुसार, ज्ञान तो आत्मा का गुण है और इसीलिए जानने की क्रिया सतत चलती ही रहती है। 100 अतः शिक्षा-प्रबन्धन के लिए व्यक्ति को जीवन की किसी भी उम्र एवं प्रत्येक भूमिका में गुणग्राहिता का भाव रखते हुए जीवनोपयोगी तथ्यों को सीखना ही चाहिए।
जैनकथासाहित्य में अनेकानेक उदाहरण इस तथ्य के प्रमाण हैं, जैसे - कुमारपाल महाराजा ने पचास वर्ष की उम्र में संस्कृत व्याकरण का अध्ययन किया, वृद्धवादीसूरिजी ने वृद्धावस्था में विशेष साधना के बल पर ज्ञानार्जन किया और राजा के अहं का खण्डन किया इत्यादि। 3.7.7 शिक्षा-संस्कार की प्राचीन प्रक्रिया एवं वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता
उपर्युक्त चर्चा सामान्य शिक्षा की दृष्टि से की गई है, किन्तु विशेष शिक्षा अर्थात् विधिवत् ली जाने वाली विद्यालयीन शिक्षा के बारे में जैनाचार्यों ने विशेष वर्णन किया है। आदिपुराण के अनुसार, पूर्व में पाँच वर्ष की उम्र से बालक की विधिवत् शिक्षा प्रारम्भ होती थी एवं इस हेतु निम्न चार प्रकार के संस्कार दिए जाते थे107 - 1) लिपि संस्कार – पाँच वर्ष की आयु होने पर बालक का प्राथमिक अध्ययन प्रारम्भ हो जाता
था।
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अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन
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