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अध्याय 4 समय-प्रबन्धन (Time Management)
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4.1 जैनदर्शन में समय का स्वरूप एवं समय की मौलिक विशेषताएँ 4.2 समय की सार्वकालिक महत्ता 4.3 वर्तमान युग में समय का महत्त्व 4.4 समय का अप्रबन्धन और उसके दुष्परिणाम 4.5 जैनआचारमीमांसा के आधार पर समय-प्रबन्धन 4.5.1 समय-प्रबन्धन का सैद्धान्तिक-पक्ष
(1) समय-प्रबन्धन, आखिर क्यों? (2) समय-प्रबन्धन की अवधारणा
(3) समय-प्रबन्धन क्या है? 4.6 जैनदृष्टि पर आधारित समय-प्रबन्धन का प्रायोगिक-पक्ष
4.6.1 सही उद्देश्य-निर्माण करना (Making an objective) 4.6.2 सही लक्ष्यों एवं नीतियों का निर्माण करना (Right Goals & Policies) 4.6.3 सही कार्य-सूची बनाना (Right To-do List) 4.6.4 सही समय-सारणी बनाना (Right Time Table) 4.6.5 उचित व्यक्ति को उचित कार्य सौंपना (Right Delegation of Work) 4.6.6 कार्य का सही क्रियान्वयन करना (Right Implementation of Work) 4.6.7 समय की बर्बादी से बचना (Avoid Time Wastage)
4.6.8 सम्यक् नियन्त्रण या संयम की वृत्ति होना (Right control) 4.7 निष्कर्ष 4.8 स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची (Self Assessment : A questionnaire)
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