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3.7 शिक्षा प्रबन्धन का प्रायोगिक पक्ष
पूर्व में शिक्षा-प्रबन्धन के सैद्धान्तिक-पक्षों को समझने के पश्चात् यह प्रश्न उठता है कि एक सामान्य व्यक्ति के जीवन-व्यवहार में शिक्षा का प्रायोगिक स्वरूप क्या हो सकता है? इसका सम्यक् निराकरण जैनआचारमीमांसा के आधार पर किया जा रहा है। 3.7.1 शिक्षा की दो विधाएँ
शिक्षा का मूल अर्थ है - अभ्यासपूर्वक ज्ञान प्राप्त करना। अभ्यास के बिना अध्ययन अधूरा होता है, अतः शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो सैद्धान्तिक के साथ-साथ व्यावहारिक भी हो अर्थात् प्रायोगिक भी हो। जैनाचार्यों ने इसी दृष्टि को सामने रखकर शिक्षा के दो प्रकार बताए हैं - 1 ग्रहणात्मक शिक्षा (Theoretical Education) एवं 2 आसेवनात्मक शिक्षा (Practical Education)। ग्रहणात्मक शिक्षा का सम्बन्ध शिक्षा के सैद्धान्तिक पक्ष से तथा आसेवनात्मक शिक्षा का सम्बन्ध जीवन-प्रयोगों से है। आशय यह है कि पहले ग्रहण करो (जानो) फिर उसका आसेवन (प्रयोग) करो, यही शिक्षा की पूरी प्रक्रिया है।
आज अभ्यासात्मक शिक्षा छूट गई है, ज्ञानात्मक शिक्षा बच गई है।100 शिक्षा-प्रबन्धक के लिए यह आवश्यक है कि वह शारीरिक आदि षड्-आयामों से सम्बन्धित प्रत्येक शिक्षा को पहले सैद्धान्तिक तौर पर समझे और फिर उसका प्रयोग भी जीवन में अवश्य करे। 3.7.2 शिक्षा के अंग
शिक्षा का अर्थ सिर्फ सुन लेना या पढ़ लेना नहीं, अपितु सम्यक् प्रकार से विषय को धारण करना भी है। जैनाचार्यों ने इसीलिए शिक्षा (स्वाध्याय) के पाँच अंग प्रतिपादित किए हैं101 -
1) वाचना किसी विषय का पठन अथवा श्रवण करना।
जिज्ञासा के समाधान के लिए प्रश्न पूछना। 3) अनुप्रेक्षा जाने हुए विषय का बारम्बार चिन्तन करना। 4) परावर्त्तना जाने हुए विषय का पुनरावर्तन (Revision) करना। 5) धर्मकथा जाने हुए विषय में दूसरों को सहभागी बनाना।
आज शिक्षा में वाचना, परावर्त्तना एवं धर्मकथा तो किसी हद तक हो रही है, किन्तु पृच्छना एवं अनुप्रेक्षा नदारद है। आशय यह है कि शिक्षा में शिक्षार्थी को शिक्षक से प्रश्न (जिज्ञासा) पूछना चाहिए और समाधान पाना चाहिए, इससे विषय की स्पष्टता हो सकती है, परन्तु आज ऐसा नहीं हो रहा है। इसी प्रकार, जाने हुए विषय का विशेष चिन्तन, मनन, निर्णय तथा अनुभूति होनी चाहिए, परन्तु आज शिक्षार्थी का समय विद्यालय, कोचिंग क्लास इत्यादि में ही पूरा हो जाता है और वह आवश्यक चिन्तन कर ही नहीं पाता। इससे वह विषय को हृदयगम्य नहीं कर पाता, जिससे शिक्षक का विषय शिक्षार्थी
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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