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व्यतीत होने पर भी सामान्य शिक्षार्थी किसी विषयविशेष में पारंगत नहीं हो पाता (Jack of all, master of none)। 'कला' और 'वाणिज्य' के स्नातक और परास्नातक स्तर तक शिक्षित हुए अधिकांश शिक्षार्थियों को अपने विषयों की सामान्य समझ भी नहीं आ पाती है।
___ कहा भी जाता है – Half knowledge is dangerous | आज ऐसे कई शिक्षित व्यक्ति हैं, जिनके पास डिग्री है, लेकिन प्रायोगिक ज्ञान नहीं। ऐसे व्यक्ति योग्य कार्य को योग्य शैली में निष्पादित भी नहीं कर पाते, अतः शिक्षा की उचित उपयोगिता का उनके जीवन में अभाव बना रहता है। (3) असमन्वित शिक्षा - इसका अर्थ है - शिक्षा के विविध पक्षों में समन्वय का अभाव होना। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के निम्नलिखित पक्षों में समन्वय की कमी है -
1) प्रायः सैद्धान्तिक शिक्षाओं की बहुलता है और प्रायोगिक शिक्षाओं की उपेक्षा है। 2) प्रायः सूचनात्मक ज्ञान (Informative Knowledge) से शिक्षार्थी के मस्तिष्क को भर दिया ___जाता है और मूल्यपरक ज्ञान (Ethical Knowledge) का मार्गदर्शन नहीं दिया जाता है। 3) प्रायः शारीरिक-परिश्रम कम होता है और बौद्धिक-व्यायाम अधिक कराया जाता है। 4) प्रायः श्रम (प्रवृत्ति) और विश्राम (निवृत्ति) की समन्वयात्मक शिक्षा नहीं दी जाती है। 5) प्रायः शिक्षक, शिक्षार्थी, अभिभावक, शासन और समाज में समन्वय और सहयोग का अभाव ही
रहता है। 6) प्रायः कभी अवकाश अधिक होते हैं और कभी पढ़ाई, गृहकार्य, परीक्षा-भार आदि अधिक होते
हैं। दोनों में समन्वय का अभाव दृष्टिगोचर होता है। (4) शिक्षक-केंद्रित शिक्षा – वर्तमान शिक्षाप्रणाली में शिक्षा का केंद्रबिन्दु शिक्षक होता है, जबकि शिक्षार्थी होना चाहिए। इसका आशय यह नहीं है कि शिक्षक का आदर और सम्मान नहीं होना चाहिए, बल्कि यह है कि शिक्षक रूपी माली के द्वारा शिक्षार्थी का एक पौधे के समान सम्यक् पोषण होना चाहिए। आज के परिवेश में शिक्षक सिर्फ दो-चार घण्टे शिक्षार्थियों के साथ बिताता है और अक्सर उसको शिक्षार्थी का सामान्य परिचय भी मालूम नहीं होता।
रशिक्षार्थी
शक्षक
शिक्षक
शिक्षार्थी
(क) प्रचलित
अपाक्षत
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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