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3. 5 वर्त्तमान युग में शिक्षाप्रणाली की मुख्य कमियाँ एवं दुष्परिणाम
आज शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति में शिक्षा के प्रति एक विशिष्ट जागृति उत्पन्न हुई है । यह अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि अशिक्षित जीवन आज एक अभिशाप बन चुका है, जिसे तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है। अतः प्रायः सभी शिक्षित होना चाहते हैं। लेकिन इतना ही सब कुछ नहीं है। शिक्षा - प्राप्ति से अधिक आवश्यक है, समीचीन शिक्षा की प्राप्ति । सिर्फ शिक्षा की प्रसिद्धि ही व्यक्ति और समाज को प्रगति और उत्थान के ऊँचे शिखर पर नहीं पहुँचा सकती । आशय यह है कि शिक्षा की बढ़ती हुई महत्ता ही शिक्षा की प्रामाणिकता, शुद्धता और उपयोगिता का मापदण्ड नहीं बन सकती । जीवन - प्रबन्धन शिक्षा को नहीं, वरन् सम्यक् शिक्षा को प्राथमिकता देता है ।
आज व्यक्ति और समाज में बुराइयाँ अनवरत रूप से बढ़ रही हैं, जो मानव जाति के लिए एक खतरा है। यह चिन्तनीय है कि एक तरफ 'शिक्षा' की प्रसिद्धि बढ़ रही है, तो दूसरी ओर समाज का पतन हो रहा है। प्रत्येक बुद्धिजीवी एवं विचारशील व्यक्ति इस विरोधाभास से आश्चर्यचकित व शोकग्रस्त है और इस समस्या का शीघ्रातिशीघ्र समाधान चाहता है ।
वस्तुतः यह नियम है कि शिक्षा से व्यक्ति और व्यक्ति से समाज का निर्माण होता है। यदि शिक्षा सम्यक् हो, तो स्वस्थ समाज की संरचना होती है, किन्तु जब शिक्षा में विसंगतियाँ घर कर जाती हैं, तो समाज में भी विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। वर्त्तमान परिवेश में सामाजिक जीवन-मूल्यों में तेजी से आ रही गिरावट आधुनिक शिक्षाप्रणाली की प्रामाणिकता के लिए एक प्रश्नचिह्न है।
इस प्रकरण में आधुनिक शिक्षाप्रणाली की मुख्य विसंगतियों पर चर्चा की गई है, जिससे शिक्षा -प्रबन्धन की प्रक्रिया द्वारा उनका निराकरण करके उनसे उत्पन्न हो रहे दुष्प्रभावों से बचा जा सके। शिक्षा - प्रबन्धन सम्यक् शिक्षा के संस्थापन और मिथ्या शिक्षा के उत्थापन की एक जीवनोपयोगी प्रक्रिया है।
यद्यपि शिक्षाप्रणाली की सम्पूर्ण विसंगतियों को दूर कर पाना आसान नहीं है, फिर भी उनसे परिचित होना आवश्यक है। इन्हें जानकर ही हमें वर्त्तमान - परिवेश में उपलब्ध उचित संसाधनों का सम्यक् चयन करते हुए सम्यक् शिक्षा - प्रबन्धन करने की आवश्यकता का बोध होगा । वस्तुतः, शिक्षा - प्रबन्धन भी यही प्रक्रिया है कि हम वर्त्तमान में उपलब्ध शैक्षिक वातावरण की कमियों और उनके दुष्परिणामों की सम्यक् समीक्षा करें तथा सम्यक् शिक्षा - प्राप्ति के संसाधनों का सदुपयोग करते हुए सम्यक् शिक्षा प्राप्त करें ।
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आधुनिक शिक्षाप्रणाली अनेक समस्याओं से ग्रस्त है । प्रायः इसके सभी घटक जैसे - शिक्षार्थी, शिक्षक, शासन, समाज, अभिभावक और शिक्षणपद्धति इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं। ये समस्याएँ आधुनिक युग में शिक्षा के लिए किए जा रहे अथक परिश्रम को व्यर्थ बना रही हैं। इन समस्याओं से उभरकर व्यक्तित्व का समग्र विकास करना ही शिक्षा का सही तात्पर्य है और यही शिक्षा - प्रबन्धन का लक्ष्य है। आगे, आधुनिक शिक्षाप्रणाली की निम्नलिखित कमियों एवं उनके जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
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