________________
दुःखों से मुक्ति हो और आत्मा के शुद्ध स्वरूप का साक्षात्कार हो। इस प्रकार सम्यक् शिक्षा वही है, जो मानवीय दुःखों और तनावों को समझे, उनके कारणों का विश्लेषण करे, उनके प्रबन्धन के उपायों को खोजे और उन उपायों का प्रयोग करके दुःखों से मुक्त कराए। अतः हमारा यह कर्त्तव्य है कि जीवन-प्रबन्धन के लिए जीवन में शिक्षा को पर्याप्त महत्त्व दें, उसे सुनियोजित करें और समुचित शिक्षा का प्रबन्धन करें। 3.1.2 शिक्षा का शाब्दिक अर्थ
____ 'शिक्षा' शब्द संस्कृत की 'शिक्षि' (विद्या-उपादाने) धातु में 'अ' और 'टाप्' प्रत्यय लगने से बना है, जिसका अर्थ है – “सीखना' (To learn)।'
'विद्या' शब्द 'शिक्षा' का पर्यायवाची है, जो 'विद्' धातु में 'क्यप्' और 'टाप्' प्रत्यय जुड़ने से बना है। विद् धातु के अनेक अर्थ होते हैं, जैसे - 1) ज्ञान, 2) सत्ता, 3) लाभ, 4) विचार, 5) चेतना, अनुभूति, आख्यान, कथन और निवास।' ___अंग्रेजी में शिक्षा के लिए ‘एजुकेशन' (Education) शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह लैटिन भाषा के “एडुकेटम' (Educatum) शब्द से बना है। इसकी उत्पत्ति ‘एडुको' (Educo) से हुई है, जो 'ए' (E) और 'डुको' (Duco) से मिलकर बना है। इसका अर्थ है – 'अन्दर से निकालकर देना'। इस प्रकार आन्तरिक शक्तियों को बाहर अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया “एजुकेशन' है। अन्य प्रकार से 'एजुकेशन' (Education) शब्द की उत्पत्ति ‘एडुकेयर' (Educare) से हुई है, जिसका अर्थ है - 'पालन-पोषण या विकास करना'। इस प्रकार, ‘पोषण या विकास करने की प्रक्रिया' को भी 'एजुकेशन' कहते हैं।
निःसन्देह, शिक्षा के लिए प्रयुक्त शब्द भी शिक्षा की प्रबन्धकीय उपयोगिता को इंगित करते हैं। 3.1.3 शिक्षा की आवश्यकता क्यों?
जैनदर्शन के अनुसार, संसार का स्वरूप परिणामी-नित्य है, क्योंकि शाश्वत् रहते हुए भी इसका प्रतिसमय अवस्थान्तरण होता रहता है। इससे यह स्पष्ट है कि जीवन के आन्तरिक और बाह्य पक्षों का रूपान्तरण होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जहाँ रूपान्तरण या गत्यात्मकता हो, वहाँ दो दिशाएँ हो सकती हैं - सकारात्मक और नकारात्मक। नकारात्मक-दिशा से उबरने तथा सकारात्मक-दिशा में गमन करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि शिक्षा ही हमारा सही दिग्दर्शन कर सकती है।
नकारात्मक-गत्यात्मकता (Negative Dynamicity) अर्थात् कुप्रबन्धन के कारण जीवन का ह्रास होता है, आचार, विचार और व्यवहार में गिरावट आती है तथा कष्ट, निराशा और पीड़ा बढ़ती जाती है। सकारात्मक-गत्यात्मकता (Positive Dynamicity) अर्थात् सुप्रबन्धन से जीवन का यथार्थ
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
116
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org